Wednesday, May 23, 2007

मुक्तक-माला-३

१.

हम उम्मीद मिलन की ले इन्तजार करते रहे।

हर कदम फूँक-फूँक कर जमीं पर धरते रहे ।

तुमनें इकबार भी ना कोशिश की समझने की,

हमीं नादां थे इक बुत से प्यार करते रहे ।

२.

दुख से घबरा कर , चलना तो ना छोड़े ।

गर राह लगे मुश्किल इक राह नयी जोड़ें ।

बेचारगी से अपनी,नजरों मे गिर ना जाना,

जिस ओर की हवा है खुद को उधर मोड़ें

३.
इक ओर गम होता हैं बिछड़ने का।
दूसरी ओर खुदा मिलन की आस है।
यहाँ रोनें-धोनें से कुछ ना होगा यारों,
यही तो जिन्दगी का इतिहास है।

4 comments:

  1. पहला और अंतिम अच्छे लगे, दूसरा सुना सुना या पढा हुआ लगा.

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  2. मुझे तो दूसरा सब से अच्छा लगा , आखिरी पंक्ति बताती है , कि यह बाली जी ही हैं

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  3. दूसरा वाला काबिले तारीफ है. यूँ तो सभी अच्छे हैं हमेशा की तरह :)

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  4. सागर की तरह मन है मेरा जब भी लहरों से खेलता है
    कुछ शेर जुबान से कहलाकर ही दम लेता है
    deepak bharatdeep

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