हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है परमजीत जी। खुशी है कि आपके चिट्ठे पर पहला टिप्पणीकार मैं ही हूँ। आज ब्लॉगर के नेवबार से सर्च करते हुए आपके चिट्ठे तक पहुँचा।
ReplyDeleteपहले मैं आपका हिन्दी चिट्ठाजगत की दो अति महत्वपूर्ण साइटों से परिचय करवा दूँ। 'नारद' नामक साइट पर सभी हिन्दी चिट्ठों की पोस्टें एक जगह देखी जा सकती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत में चिट्ठों पर आवागमन नारद के जरिए ही होता है।
अतः नारदमुनि से आशीर्वाद लेना न भूलें। इस लिंक पर जाकर अपना चिट्ठा पंजीकृत करवा लें। नारद आशीर्वाद बिना हिन्दी चिट्ठाजगत में कल्याण नहीं होता।
'परिचर्चा' एक हिन्दी फोरम है जिस पर हिन्दी टाइपिंग तथा ब्लॉग संबंधी मदद के अतिरिक्त भी अपनी भाषा में मनोरंजन हेतु बहुत कुछ है।
अतः परिचर्चा के भी सदस्य बन जाइए। हिन्दी लेखन संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम तथा ब्लॉग संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम में सहायता ले सकते हैं।
उम्मीद है जल्द ही नारद और परिचर्चा पर दिखाई दोगे।
श्रीश शर्मा 'ई-पंडित'
अब आपकी पूछी समस्या का हल बताता हूँ। आपकी रचनाओं के पेस्ट होने के बाद रोमन में बदलने का कारण हैं कि वे नॉन य़ूनीकोड फॉन्ट में हैं। अतः सब से अच्छा तरीका यह होगा कि आप उन्हें यूनीकोड फॉन्ट में बदल लें और फिर जहाँ चाहे मर्जी कॉपी पेस्ट कर सकते हैं। इस काम के लिए कुछेक टूल होते हैं। हिन्दी के लिए एक रुपांतर नामक टूल है। लेकिन यह गुरुमुखी के लिए काम करता है या नहीं पता नहीं। इस बारे में आप परिचर्चा में प्रश्न पूछें।
ReplyDeleteवैसे सबसे पहला काम आप नारद पर अपना चिट्ठा पंजीकृत करवाने और परिचर्चा का सदस्य बनने का करें।