(चित्र गुगुल से साभार)
सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।
अपने अपने सच दोनों के,
दोनों को क्यों तौल रहे हो ?
जो मैने भुगता, उस को गाया।
जो तूने भुगता, उसे सुनाया।
दोनो अपनी अपनी कह कर,
अपना सिर क्यों नोंच रहे हो।
सुन्दर फूलो के संग अक्सर,
काँटे मिल ही जाते हैं।
काँटों मे भी फूल खिले हैं,
कह कर क्युँ , शर्माते हैं।
फूलों पर भँवरें मंडराएं, या
तितलीयां अपना नेह लुटाएं।
इक दूजे के पूरक बनकर
क्युँ ना ये संसार सजाएं।
बदली के संग पानी रहता।
फूलो संग गंध महक रही है।
शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये,
फिर क्युँकर अब बहक रही है ?
जिस पथ पर चलना चाहता मैं।
उसी पथ के तुम, अनुगामी हो।
आगे रहने की अभिलाषा मे,
क्युँ काँटो को बिखराते हो।
आओ मिल कर साथ चलें हम।
अपने को कब खोल रहे हो?
सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।