भीतर का संवाद
यदि हम अपने जीवन की घटनाओं को देखे तो एहसास होता है कि जितना धोखा अपने निकटतम देते हैं उतना धोखा हम बाहर वालों से नही खाते। वैसे तो प्रत्येक के जीवन में ऐसी सैकड़ों घटनाएं होगी...लेकिन मैं यहाँ उदाहरणार्थ एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा-- मेरे किसी अपने नें ही मेरे अति निकटतम लोगों को विश्वास मे लेकर मेरे घर आश्रय लिआ...मुझे कहा गया कि इस से मुझे आर्थिक लाभ मिलेगा और सहयोग मिलेगा। लेकिन परिणाम बिल्कुल विपरीत रहा...मुझे अर्थ लाभ तो क्या होना था इसके विपरीत आर्थिक हानी हुई...उन महाशय जी ने मेरे ही घर से मेरी एक प्रोपर्टी के कागज चुराये और जालसाजी कर के उन्हें बेच दिया....जबकि इस प्रापर्टी की किस्ते भी मैं उसी के जरीए जमा करवा रहा था..प्रोपर्टी बेचने के बाद भी उसने मुझे भनक नहीलगनें दी और तीन साल तक मुझ से किस्ते जमा करवाने के नाम पर धन लेता रहा ....अब इस घट्ना के बाद मेरी मनोस्थिति ऐसी थी कि ना तो मैं उस की रिपोर्ट पुलिस को कर सकता था और ना ही उसे किसी प्रकार का दण्ड दे सकता था। क्योकि यदि पुलिस को रिपोर्ट करता तो उसकी सरकारी नौकरी भी जाती और जेल भी होती...ऐसे में उसके बच्चों को इस का फल भुगतना पड़ता...।अंतत: बच्चो की खातिर मैं चुप बैठ गया। उसे आश्रय देनें के बाद मुझे मानसिक रूप से इतना अधिक प्रताड़ित व अपमानित होना पडा...और धन की हानी उठानी पड़ी कि अब मुझे किसी पर विश्वास ही नही हो पाता। मैनें ऐसी घटनाओं से बचनें के लिए बहुत मनन किया...क्यों कि समाज में रहते हुए ना चाहते हुए भी हमें ऐसी परिस्थियॊ का सामना तो अवश्य करना ही पड़ेगा। मनन करनें पर इस परिणाम पर पहुँचा की यदि किसी की सहायता करनी ही पड़ जायें तो सब से पहले स्वयं को सुरक्षित कर लें....आर्थिक व कानूनी रूप में....कुछ धन सिक्योरिटी के रूप में भी रखवा लें... तभी किसी अपनें की मदद करें। यहाँ एक ओर बात भी ध्यान में रखनें योग्य है कि यह भी जाँच परख ले कि जिसकी आप सहायता करनें जा रहे हैं उन का किन लोगों के साथ उठना -बैठना है। यदि ऐसा व्यक्ति किन्हीं कुप्रवॄति व कुसंस्कारी लोगों के प्रति झुकाव रखता है और आप के कहने पर भी उन से संबध तोड़ने को तैयार नही है तो ऐसे व्यक्ति से दूर ही रहें क्योंकि ऐसा व्यक्ति आपको कभी भी परेशानी में डाल सकता है ..आप ऐसे व्यक्ति की सहायता का विचार ही त्याग दें। तब आप इसका परिणाम देखेगें कि .... आपके सहायता ना करनें पर ....ऐसा व्यक्ति यदि अपने उन कुसंस्कारी व कुप्रवृति वालें लोगों के साथ मिल कर आप को परेशान करनें का प्रयास करता है तो समझ लें कि संगत का असर हो चुका है । यदि वह ऐसा नही करता तो समझना चाहिए कि शायद कभी भविष्य में उसमें सुधार होने की कोई संभावना की जा सकती है।...तब आप प्रतिक्षा करें ...और सुधार होनें पर उसकी मदद अवश्य करें। क्यूँकि यह एक समाजिक व पारिवारिक कृत है...और इसी प्रकार के निर्णय लेनें पर एक अच्छे समाज व परिवार की नींव पड़ सकती है।