Thursday, October 24, 2013

सुन री निशा !



सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।

तेरा आना मन को भाये
सपनों का संसार रचाये
बिन पंखों के दूर गगन में
पंछी बन चहके, उड़ जाये
हर मन तेरा ही निवास है।

विरह वेदना एंकाकीपन ये
संसारी की प्रीत पुरानी
मिल के बिछुड़ना बिछ्ड़ा मिलना
संसारी की यही कहानी
आदम में बस यही खास है।

प्रतिपल जीना मरना जीवन
अमृत गरल का पीवन जीवन
सत्य असत्य का पथिक बन चलना
रिश्तों-नातों का सीवन जीवन
जीवन का कैसा परिहास है ?

अभिलाषा का निर्मित भंडार
किसने किया इसे साकार ...
नूतनता,प्रतिपल परिवर्तन
जीवन का बस यही आधार
फिर भी ये कैसा उल्लास है ?

सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।