Wednesday, June 26, 2013

जब अपना कोई रूठ गया...



बरसा बादल जग डूब गया,
जब अपना कोई रूठ गया।

 निरव खग का सब कोलाहल,
क्या पवन वेग से दोड़ेगी।
क्या नदिया सरपट उछल उछल
पर्वत की छाती फोड़ेगी।
ये कैसा मन बोध मुझे
मेरे सपनों को लूट गया।

बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।

 प्रियतम का विरह ऐसा ही
क्या होता सब के जीवन में ,
अमृत भी विष-सा लगता है
तृष्णा में वारी पीवन में ।
क्रंदन करती हर दिशा लगे
काला बादल ज्यों फूट गया।

बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।