दहशत भरे माहौल में,कोई गीत कैसे गाएगा?
आँसुओं के बीच कोई, कैसे मुस्कराएगा?
मगर यहाँ कमी कहाँ, लोग ऐसे हैं बहुत।
कुर्सी पे बैठा हो कहीं भी, रोटी सेंक जाएगा।
मौत आदमी की बनी, मोहरा उन के खेल का।
राज उन का हर जगह है,बाहर या हो जेल का।
क्षुब्ध होकर आदमी,उठाए बंदूक उन्हें ,फर्क क्या!
रुकती नही है गाड़ी उनकी, ज्यों सफर हो रेल का।
बिका हुआ है आदमी,खरीददार चाहिए।
हों भले चरित्रहीन, सत्य के गीत गाइए।
कौन-सी दिशा की ओर, देश अपना चल दिया।
मौन क्यूँ यहाँ सभी, कोई तो समझाइए ?
देखे कौन आके अब, इन्सान को समझाएगा।
दहशत भरे माहौल में, कोई गीत कैसे गाएगा?