फिर तेरी यादें आई ये मन तरसा है।
इस भरी दोपहरी में सावन बरसा है।
दिन का चैंन गया रातों की नींद गई,
मोहब्बत लगती हमको अब कर्जा है।
अब दिल के बदले दिल नही मिलता।
किसी भी मौसम में गुल नही खिलता।
वो जो कहते थे हजारॊ यहाँ अपने हैं,
रोनें को एक भी कंधा नही मिलता।