अभी हाल ही मे ज्ञान दत्त जी की एक टिप्पणी जो कि" शकुनाखर" (ब्लोग पर दी गई)(http://shakunaakhar.blogspot.com/2009/04/blog-post_14.html) के कारण एक विवाद ने जन्म लिआ है।ज्ञानदत्त जी ने कहा… जहां तक मेरी सोच है कि यह ब्लोगर पर निर्भर करता है कि वह कैसे लिखे। इस के लिए किसी को बाध्य नही किया जा सकता।यदि आप जवाब देही से बचना चाहते हो तो छद्मनाम से ही लिखना चहिए।लेकिन यदि आप जवाब देही से बचना नही चाहते तो अपने असली नाम से लिखें।अब एक दूसरा सवाल कि हमे अपने बारे में कितनी जानकारी देनी चाहिए?यहां पर मै स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं अपने वास्तविक नाम से व उप नाम दोनों से लिखता हूँ।लेकिन परिचय मैनें भी पूर्ण नही दिया है।यानी कि घर का अता पता या टेलिफोन नम्बर आदि।शायद इसी लिए मै सोचता हूँ की संक्षित परिचय दे देने मे कोई हर्ज नही है।लेकिन ऐसी जानकारीयां हमे कभी भी नही देनी चाहिए जो हमें किसी परेशानी मे डालने मे सहायक हो सकती हैं।दूसरा यदि कोई ब्लोगर अपनी वास्तविकता छुपाना जरूरी समझता है तो उसे ऐसा करने का पूरा हक है।अंत मे आप से निवेदन है कि यह मेरे निजि विचार हैं यह जरूरी नही कि आप भी इस से सहमत हों।लेकिन चाहूँगा की आप भी अपने विचार बताएं।
कुछ कहो, जो कहना है, दिल की बात को,
छुपा के किस लिए यहा, आँसू बहाते हो।
देख तेरे आँसुओ को,ना दिल पसीजेगा,
हाल सबका एक-सा है, किसको सुनाते हो।
जिसको सुनाओगे दास्ता,सुनके हँस देगा,
उन को उनकी कहानी ,जैसे सुनाते हो।
कौन है खुश दूसरे से,खुद से भी, कहाँ,
परमजीत किसके लिए गीत गाते हो।
मत पूछिए क्या सोच घर से निकल पड़ा।
हरिक कदम पे मुझको, पत्थर मिला पड़ा।
छोड़ा था घर जिस के लिए, उसे ढूंढते रहे,
वो घर अपनें बैठा रहा, जिद पे रहा अड़ा।
क्यों मान दिल की बात दिल लगा बैठे,
तड़पना तमाशा बना , वो हँसता रहा खड़ा।
अब आखिरी साँसों में, जाना तेरा वजूद,
परमजीत अपनें भीतर कब से था पड़ा।
मरे हुए लोगो के बीच,
न्याय की माँग करना,
मूर्खता कहलाता है।
इसी लिए हर नेता
हमे देख कर मुस्कराता है।
अपना हाथ हिलाता है।
किसे परवाह है
पच्चीस साल तक
जिन आँसुओं को
वे अपने फटे आँचल मे
समेटते रहे
उसे बहने से रोकनें के लिए
कोई आवाज उठाएगा!!!
न्याय के द्वारा
कोई उन आँसुओं की
कीमत चुकाएगा।
या फिर हमेशा की तरह
न्याय अन्याय के
नीचे दबकर
मर जाएगा।
हजारो लोगों की मौत
जिन्दा जलती चिताओं का धुँआ
किसी ने तो उठाया होगा।
क्या तुमने बिना आग के
धुँआ उठता देखा है?
क्या तुमने बिना मारे
किसी का कत्ल होते देखा है?
लेकिन हमारे देश में
ऐसा ही देखा जाता है।
इसी लिए
न्याय की तलाश में
आदमी
अन्याय के भार के नीचे
दबकर हर बार मर जाता है।
यह कहानी
किसी एक कौम के साथ नही
कई कौमों के साथ
दोहराई गई।
न्याय की कई बार
हँसी उड़ाई गई।
शायद इसी लिए
मेरा भारत महान
कहलाता है।
इसी लिए हर नेता
हमे देख कर मुस्कराता है।
अपना हाथ हिलाता है।**********************
मुझे नहीं लगता कि छद्मनाम से लिखने वाले या अपने बारे में कम से कम उजागर करने वाले बहुत सफल ब्लॉगर होते हैं।
आपकी जिन्दगी में बहुत कुछ पब्लिक होता है, कुछ प्राइवेट होता है और अत्यल्प सीक्रेट होता है।
पब्लिक को यथा सम्भव पब्लिक करना ब्लॉगर की जिम्मेदारी है। पर अधिकांश पहेली/कविता/गजल/साहित्य ठेलने में इतने आत्मरत हैं कि इस पक्ष पर सोचते लिखते नहीं।
और उनकी ब्लॉगिंग बहुत अच्छी रेट नहीं की जा सकती।