Thursday, December 31, 2009

नये साल की आप सब को बधाई...



 अच्छा बहाना है, नया साल आया है।
मिलने का एक नया बहाना लाया है।


जो कहते थे हमसे कभी,वक्त नही है,
नये साल ने हमको उनसे मिलाया है।


मुँह फुला बैठा था जो हमसे बहुत दूर,
अपने अंह ने कर रखा था, मजबूर ।


नये साल की मुबारक पर मुस्कराया है।
अच्छा बहाना है, नया साल आया है।


बीत चुका जो उसका कुछ नही है मोल,
सही-गलत के तराजू पर न उसे तोल।


बिका हुआ माल किसीको कब भाया है?
अच्छा बहाना है, नया साल आया है।


Monday, December 21, 2009

अपने अपने सच....


                                                                                   (चित्र गुगुल से साभार)

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।
अपने अपने सच दोनों के,
दोनों को क्यों तौल रहे हो ?


जो मैने भुगता, उस को गाया।
जो तूने भुगता, उसे सुनाया।
दोनो अपनी अपनी कह कर,
अपना सिर क्यों नोंच रहे हो।


सुन्दर फूलो के संग अक्सर,
काँटे  मिल ही  जाते  हैं।
काँटों मे भी फूल खिले हैं,
कह कर क्युँ , शर्माते हैं।


फूलों पर भँवरें मंडराएं,  या
तितलीयां अपना नेह लुटाएं।
इक दूजे के पूरक बनकर
क्युँ ना ये संसार सजाएं।


बदली के संग पानी रहता।
फूलो संग गंध महक रही है।
शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये,
फिर क्युँकर अब बहक रही है ?


जिस पथ पर चलना चाहता मैं।
उसी पथ के तुम, अनुगामी हो।
आगे रहने की अभिलाषा मे,

क्युँ काँटो को  बिखराते हो।


आओ मिल कर साथ चलें हम।
अपने को कब खोल रहे हो?

सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।


Tuesday, December 15, 2009

कोई घर ना फिर से उजड़ जाए.....


फिर कहीं राख को कोई कुरेद रहा।
चिंगारी कहीं कोई ना भड़क जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

बहुत सोच समझ कर उठाना ये कदम अपना।
कदम कदम पे बारूद मुझ को दिखता है।
आज पैसो की खातिर मेरे वतन मे यारों
जीना मरना भी यहाँ अब बिकता है।
कहीं मोहरा बन के उनके हाथों का,
कोड़ीयों के भाव ना कहीं तू बिक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

खेल ये खेलते है जिन की नजर कुर्सी हैं।
कुर्सी की खातिर जो सदा जीते मरते हैं।
जानता मैं भी हूँ ,तू भी जानता है उन्हें,
फिर क्यूँ उन की बात पर यकी करते हैं?
हरिक बार करते हैं वो सच का दावा,
कहीं उन के दावे पर ना तू बहक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।

Monday, December 14, 2009

मुस्कराहट.....

एक पैकेट में ७ बन(ब्रेड) हैं.

मेरी पत्नी रोज आधा खाती है और मैं एक पूरा.

पहेली है कि ५ वें दिन कौन कितना खायेगा? (समीर जी की पोस्ट से साभार)

यदि पत्नी मेरी हुई तो....

पहले दिन ही पैकेट खत्म हो जाएगा।

स्त्री/ पुरूष विमर्श धरा रह जाएगा।

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एक पत्नी बोली -
मैं अपने पति को चार रोटियां खिलाती हूँ
लेकिन खुद एक ही खाती हूँ।
दूसरी ने कहा-
अच्छा है ,पति- धर्म ऐसे ही निभाया जाता है।
चार की एक और एक को चार जब बनाया जाता है।

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एक पत्नी ने दूसरी से कहा-
मेरे पति कभी किसी को
आँख उठा कर भी नही देखते....
दूसरी ने कहा-
बहन, मैं यह बात जानती हूँ और मानती हूँ ....
तुम्हारे पति से किसी औरत का कद बड़ा हो ही नही सकता।

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Thursday, December 10, 2009

मौहब्बत और फैंशन.



मौहब्बत से कहो, बातें तेरी सब मान लेते हैं।
मगर हर बात पर क्यूँ , हमारी जान लेते हैं।

बहुत उम्मीद थी, राहों में, चिरागे रोशनी होगी,
मगर हर बार अंधेरों का दामन थाम लेते हैं।

बहुत मजबूर हैं दिल से, यहाँ चलना जरूरी है,
ठहर जाए अगर कोई, मुर्दा मान लेते हैं।

अज़ब दस्तूर यारों दुनिया का ,अब चलन में है,
पैसों से मौहब्बत को, सभी पहचान लेते हैं।

वादों कसमों औ’ दिल की , कीमत नही लगती,
परमजीत तोड़ना इनको अब फैंशन मान लेते हैं।