Tuesday, December 30, 2008

कैसे वादे हैं तेरे


कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
इससे अच्छा था , कोई वादा ना करते हमसे,
बेवजह रोज, शर्मिंदगी, उठाते हो।
जानते हैं, तुम्हारे दिलमें कोई, गैर रहता है,
नामालूम कैसे, दोनों से, निभाते हो।
भूलना चाहा बहुत, भूल ना पाया कोई,
दिल के हाथों, मजबूर,जब हो जाते हो।
अजीब बात है, हर दिल की ,यही कहानी है,
परमजीत हँसेगें गैर,आँसू जो बहाते हो।

कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।

Thursday, December 25, 2008

मुक्तक माला - १४

चलने वालो को कब कोई रोक पाया है।
बस इतना याद रखो किसने सताया है।
यही चुभन जगाए रखेगी, काली रातों में,
विजय का गीत, सभी ने ऐसे गाया है।

बहुत नाजुक है ये दिल, तोड़ना नहीं।
संग है कोई, उसे राह में छोड़ना नही।
बहुत तकलीफ होती है ऐसे हालातों में,
पकड़ा हुआ हाथ कभी तू छोड़ना नही।

मत समझ गैर जो सताते हैं तुझको यहाँ।
इन की फितरत है,फिर वो जाएगें कहाँ।
खुदा के रहमों करम पर दोनों जिन्दा हैं,
खुदा ने ऐसा ही बनाया है शायद ये जहां।

Saturday, December 20, 2008

मैं प्रतिक्षा कर रहा हूँ


बड़े नाम वालों के
छोटे काम भी
बड़े नजर आते हैं।
इसी लिए हमेशा
छोटे मारे जाते हैं।
तुम भी मुस्कराते हो।
हम भी मुस्कराते हैं।
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जरूरी नही है
तुम्हारा गीत कोई सुनें।
लेकिन सभी गाते हैं।
खुशी,गमी या तन्हाईयां
सभी को सताते हैं।
तुम जरूर गाओं
क्यों कि
पंछी भी गाते हैं।
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यह एक मन की व्यथा है
जो हर बात को शुरू करके
अधूरा छोड़ देता है।
जैसे फूल को
पूरा खिलनें से पहले ही
माली तोड़ लेता है।
ताकी बाजार में उसकी
अच्छी कीमत मिल सके।
माला औ गुलदस्तों मे सजाता है।
हमारा जीवन भी इसी तरह जाता है।
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लेकिन कुछ फूल
ऐसे भी होते हैं।
जो माली की नजर से
बहुत दूर होते हैं।
ऐसे फूल अक्सर
तन्हाईयों में रोते हैं।
क्यूँकि मुर्झा कर मरना
बहुत दुखदाई होता है।
क्यूँकि तब वह सिर्फ
घास-फूँस होता है।
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बहुत भूलना चाहता हूँ
उस के फैले हुए हाथों को।
दुबारा किसी के सामनें
फैलनें ना दूँ।
उस की बोलती आँखों में
जो याचना नजर आती है।
उसे हमेशा के लिए
उस से छीन लूँ।
लेकिन मुझे अपनी बेबसी पर
बहुत गुस्सा आता है।
मैं ऊपर वाले को ताकता हूँ।
पता नही वह कहाँ छुप कर बैठा है।
किस बात पर ऐठा है।
फिर अपनें आप से पूछता हूँ-
"कहीं वह भी मेरी तरह"
"लाचार तो नहीं।"
मेरे पास कोई जवाब नहीं।
यदि आप को कहीं
जवाब मिले तो बताना।
मैं प्रतिक्षा कर रहा हूँ।

Monday, December 15, 2008

चलना होगा तुझे अकेला


चलना होगा तुझे अकेला।

किस का रस्ता देखे मन तू,

अम्बर में छाए हैं घन क्यूँ?

मोर कहीं पर नाचा होगा,

जीवन तेरे संग भी खेला।

चलना होगा तुझे अकेला।

तिल-तिल मरते सपनें तेरे,

पानी पर बनते हैं घेरे।

इन घेरों को तोड़ दे मन तू,

अब तक तूनें कितना झेला।

चलना होगा तुझे अकेला।

दूर गगन में पंछी उड़ता,

दाना-तिनका खानें को।

लगा रहता है आना-जाना,

जीवन जाल है एक झमेला।

चलना होगा तुझे अकेला।

Thursday, December 11, 2008

पीड़ा


कोई दूसरा पीड़ा दे ,
तो महसूस नही होता ।
अपनो की पीड़ा
बहुत तकलीफ देती है।
ऐसा लगता है मेरी हर खुशी
जलती चिता पर लेटी है।

इसी लिए जब भी
कोई अपना पास आता है।
कोई मीठा-सा गीत गाता है।
चाशनी में लिपटे जहरीले बोल
मुझ को सुनाता है।
सब जानते हुए भी
उन्हें भीतर उतार लेता हूँ।
इसी तरह इस अथाह सागर में
अपनी नौका खेता हूँ।

कई बार अपने से ही प्रश्न पूछता हूँ-
’क्या ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही होता है?"
फिर चारो ओर
उत्तर सुनने की कोशिश करता हूँ।
किसी के पास कोई जवाब नही होता है।
बस इतना ही महसूस होता है।
यहाँ हर इन्सान
मेरी तरह ही रोता है।

Sunday, December 7, 2008

परजीवी

वह एक परजीवी है।

अंधा और बहरा है,

बोलता बहुत है,

दूसरों की बातों को

तोलता बहुत है।

नए-नए स्वांग रच

मजमा लगाता है।

दूसरों के दुख को

अपना बताता है।

एक मसखरा है

अपनी बातों से वादों से

सब को बहलाता है।

हमारे देश में ऐसा जीव-

नेता कहलाता है।

Thursday, December 4, 2008

शहीदों की पुकार


जो चिराग जलाए तूनें, आज मेरी कब्र पर।
बुझ ना जाए भूल से, ये कर्ज है हर शख्स पर।
वक्त की इस मार से मुझको भुला देना ना तू,
देखना है मौत का, तुझ पर हुआ है क्या असर।

मौत से मेरी तुझे गर, राह मिलती है कोई।
धन्य होऊँगा, जगी जो आत्मा तेरी सोई।
जाग कर सोना नही मेरे वतन के नौजवां,
माफ ना करूँगा तुझको, आँख जो कोई रोई।

पूछना है आज हर नेता से बस येही सवाल।
तेरा बेटा क्यूँ नही लेता है बन्दूके संम्भाल?
गर नही है आग तेरे भीतर वतन परस्ती की,
हाथों में पहन चूड़ी,पाँवों में घुँघरू ले डाल।