ना जानें क्यूँ ये तन्हाई मुझे भानें लगी।
तेरी यादों की परियां गीत फिर गाने लगी।
यहाँ कोई भी मेरे साथ हसँता है ना रोता है,
यही इक सोच मुझको फिर तड़पाने लगी।
कभी पंछी-सा मन उड़ता था आकाश में,
बस !यही बात मुझको फिर सताने लगी।
जहाँ भी देखता हूँ अब मुझे पतझड़ लगे,
बहारें भी मुझसे मुँह फैर , जाने लगी।
ना होती याद तो किसके सहारे जी रहा होता,
तन्हाई मुझे ये राज फिर समझाने लगी।
ना जानें क्यूँ ये तन्हाई मुझे भानें लगी।
तेरी यादों की परियां गीत फिर गाने लगी।