हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Wednesday, February 27, 2008
मौन
बस! अब रहनें दो!
बहुत कह चुके तुम से
हर बार हमारे प्रश्न पर मौन रहना,
अब तुम्हारी आदत बन चुकी है।
बहुत भागता रहा हूँ-
उन के लिए जो कभी किसी काम की नही,
बस संग्रह है।
बहुत बहस करता रहा हूँ-
उस के लिए जो कभी खतम होती नही,
समय की बर्बादी है।
इसी लिए अब मैनें -
तुम्हारे मौन को ,
अपना उत्तर बनाया है
Tuesday, February 26, 2008
तुम बिन कौन...
रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,
तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।
तेरा लिए आसरा चलता अनजानें इन रस्तों पर,
कदम-कदम पर अपनों की हमनें तो बस घात सही।
क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,
या फिर रस्ते में टूटेगी साँसों की सौगात कहीं।
रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,
तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।
Saturday, February 23, 2008
धोखा!
गुलशन में फूल खिल गए सारे गुलाब के,
जब चहरे पे तबुस्सुम, आई जनाब के,
यही सोच हमनें हाथ अपना बढा दिया,
खुद ही हुआ अफसोस, हमनें ये क्या किया,
किसी ओर के ख्यालों में वो मुस्कराए थे,
नजरों मॆ हमने खुद को क्यूँकर गिरा दिया,
अब नाराज हैं खुद से,खफा खुद से हो गए,
अपनें ही हाथों क्यूँकर हुए टुकड़ें ये दिल के,
गुलशन में फूल खिल गए सारे गुलाब के,
जब चहरे पे तबुस्सुम, आई जनाब के,
Friday, February 22, 2008
आनंद उत्सव
कोई अज्ञात भय
जो सदा रहता है घेरे चारो ओर
उसी से बचनें की आशा में
हम बस भागते रहते हैं।
नही जानते कहाँ जाना है,
कहाँ जा रहे हैं?
इन दिशाविहीन रास्तों पर,
जो कभी हमें कहीं पहुँचाते भी नही,
इन पर चलते हुए ऐसा महसूस होता है-
हम एक ही जगह खड़े-खड़े,
कदमताल करते रह जाते हैं।
जहाँ से चले थे
वहीं अपनें को पाते हैं।
लेकिन सब प्रयास करनें पर भी,
भय नही मिटता!
हमारे सारे प्रयास
इसी भय से मुक्त होनें की खातिर
हमें और भी भटकाते हैं,
हमारा भय को और भी बढाते हैं।
आओ! सब मिलकर
इस अज्ञात भय में कूद जाएं।
मिलकर एक नया
आनंद उत्सव मनाएं।
जो सदा रहता है घेरे चारो ओर
उसी से बचनें की आशा में
हम बस भागते रहते हैं।
नही जानते कहाँ जाना है,
कहाँ जा रहे हैं?
इन दिशाविहीन रास्तों पर,
जो कभी हमें कहीं पहुँचाते भी नही,
इन पर चलते हुए ऐसा महसूस होता है-
हम एक ही जगह खड़े-खड़े,
कदमताल करते रह जाते हैं।
जहाँ से चले थे
वहीं अपनें को पाते हैं।
लेकिन सब प्रयास करनें पर भी,
भय नही मिटता!
हमारे सारे प्रयास
इसी भय से मुक्त होनें की खातिर
हमें और भी भटकाते हैं,
हमारा भय को और भी बढाते हैं।
आओ! सब मिलकर
इस अज्ञात भय में कूद जाएं।
मिलकर एक नया
आनंद उत्सव मनाएं।
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