Thursday, October 30, 2008

उम्मीद

मेरे मन में कई बार विचार आता है कि क्या हम इस जिन्दगी को जी रहे हैं.......या फिर ये जीवन हम को जी रहा है।हम सपने सजाते हैं और जीवन भर उन्हें पूरा करनें की कोशिश में लगे रहते हैं।यदि कभी कोई एक सपना सोभाग्य से कहीं पूरा हो भी जाता है तो वह अपनें साथ बीसीयों नए सपनें लेकर हमारे सामनें खड़ा हो जाता है और हम फिर उन को पूरा करनें की उधेड़्बुन में लग जाते हैं।बस सारा जीवन इसी भाग -दोड़ में चला जाता है।आखिर में जो हमारे हाथ लगता है ,वह हमे संतुष्ट नही कर पाता।हमें संतोष प्रदान नही कर पाता।हमें लगता है कि हम जो कुछ करते रहें हैं वह नाकाफी था।इतना सब कुछ होते हुए भी हम उम्मीद नहीं छोड़ते।आखिर ऐसा क्या है जो हमें सदा चलते रहनें की प्रेरणा देता रहता है।जब कि हम उसके बारे में कुछ भी तो नही जानते।कोई अज्ञात शक्ति हमें जीनें की ओर ले जाती है।या कहीं ऐसा तो नही कि हमारी यह सारी भागम भाग का कारण मौत का भय है?....


मौत दुल्हा बन इक दिन आएगा।

जिन्दगी दुल्हन को संग ले जाएगा।

मन सजाता बाँवरा सपनें यहाँ,

परमजीत इक दिन बहुत पछताएगा।


हो ना सकेगें, सपनें, तेरे सच कभी।

जानता है, बिखरेगें, सब ही यहीं।

ठहरना इसको सुहाता है कहाँ,

पड़नें लगी है इसको, कम, अब जमीं।


वक्त से पहले मगर मन मर नहीं।

इक दिन अपने,यार से मिल पाएगा।

उम्मीद दिल में ले के,ये चलते रहो,

परमजीत पहुँच इक दिन जाएगा।

Thursday, October 16, 2008

धर्म परिवर्तन से बचने के उपाय


इस धर्म परिवतन को लेकर ना जानें कितने झगड़े व खून खराबा आए दिन होता रहता है।आज यह साबित करना मुश्किल होता जा रहा है कि लोग अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करते हैं या फिर किसी लालच या भय के कारण वह इस ओर जाते हैं।हमारा इतिहास बताता है कि हिन्दू धर्म पर यह हमला आज से नही बहुत पुरानें समय से हो रहा है।जब देश मे मुगल राज्य की स्थापना हुई थी उस समय भी कई ऐसे शासक थे जो हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया करते थे।इतिहास इस का गवाह है।

लेकिन उस के बाद ईसाईयों ने इस काम को संभाल लिआ। आज जो धर्म परिवर्तन हो रहे हैं, वह स्वैछा से बहुत कम हैं। लेकिन गरीबी व अपमानित जीवन से मुक्ति पानें के लिए ज्यादा हो रहे हैं।इस के पीछे लालच व सुविधाओं का लोभ रूपी दाना डाला जा रहा है।जिस में गरीब हिन्दु आसानी में फाँसा जा रहा है। समझ नही आता कि इस तरह धरम परिवर्तन कराने मे उन्हें क्या फायदा होता है? यदि वह बिना धर्म परिवर्तन कराए ही उन को वही सुविधाएं प्रदान कर दे और धर्म परिवर्तन के लिए कोई दबाव ना डाले तो क्या इस तरह कार्य या सेवा करनें से उन के ईसा मसीह उन से नाराज हो जाएगें ?

यहाँ स्पस्ट करना चाहुँगा कि यह लेख किसी धर्म की निंदा करने के लिए नही लिखा जा रहा।इसे लिखने का कारण मात्र इतना है कि जो अपने धर्म के अनुयायीओं की सख्या बढाने के चक्कर में दुसरों को लालच या भय के द्वारा भ्रष्ट करते हैं, उन्हें रोका जा सके। उन के द्वारा किए गए ऐसे कार्य कुछ लोगो को उकसानें का कारण बन जाते हैं जिस से देश में रक्तपात व आगजनी की शर्मनाक घटनाएं होती रहती हैं।इन सभी को रोका जा सके।

लेकिन इस धर्म परिवर्तन के पीछे मात्र ईसाई ही एक कारण नही हैं।इस के पीछे हमारी दलितो और गरीबों के प्रति हमारी मानसिकता भी एक कारण है। आज भी दलितो को कोई पास नही बैठनें देता।भले ही शहरों में यह सब कुछ नजर नही आता ,लेकिन गाँवों में यह आज भी हर जगह दिखाई पड़ता है।आप किसी भी गाँव में चले जाए। वही आप को दलितों को कदम कदम पर अपमान का घूट पीते देखा जा सकता है।ऊची जातियो द्वारा दिया गया यही अपमान उन्हें धर्म परिवर्तन की ओर ले जा रहा है।लोगो का ऐसा व्यवाहर भी इस धर्म परिवर्तन का एक कारण हो सकता है। इस लिए यदि हमें इस धर्म परिवर्तन को रोकना है तो सब से पहले इस निम्न वर्ग कहे जानें वालो के मन से छोटेपन का एहसास हटाना होगा।उन्हें अपने साथ बराबरी का दर्जा देना होगा। उसे कदम कदम पर अपमानित होनें के कारणो को दूर करना होगा।इस के लिए ईसाईयो के घर जलाने की नही, किसी को मारने की नही है। बल्कि अपने भीतर बनी ऊँच-नीच की दिवार गिरानी होगी,अपने भीतर के इन कुसंस्कारों को जलाना होगा। यदि हम उन दलित्व पिछड़े कहे जानें वालों को बराबरी का हक दे देगें ,तो फिर कोई लालच उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए, उकसाने मे सफल नही हो सकता।लेकिन क्या शोर मचानें वाले लोग इस कार्य को व्यवाहरिक रूप में ला सकते हैं? यदि ला सकते हैं तो बहुत हद तक इस धर्म परिवर्तन की समस्या से बचने का समाधान हो जाएगा।

यदि फिर भी धर्म परिवर्तन की समस्या का समाधान नही होता तो आप को हाल में ही घटी एक घटना के बारे में बताता हूँ जो मैनें किसी अपनें खास से सुनी थी।यह घटना बिल्कुल सच्ची है।

कुछ समय पहले एक पढा लिखा सिख नौजवान दिल्ली नौकरी की तलाश में आया था।लेकिन काफि कोशिश करनें के बाद भी उसे नौकरी नही मिल पा रही थी।इसी तलाश में उस के फाँके काटने की नौबत आ गई थी।लेकिन इसी बीच संयोग से उन का संम्पर्क एक विशेष संप्रदाय के विशिष्ट व्यक्ति से हो गया।खाली होनें के कारण वह सिख नौजवान उन के साथ उन के धार्मिक सस्थान में भी आने जानें लगा\ उन महाश्य को मालुम था कि यह एक जरूरत मंद है सो उसे अपनें धर्म में लानें के लिए उस पर जोर डालने लगे।उस नौजवान ने अपनी सारी समस्या उन के सामने रख दी कि पैसा धेला मेरे व मेरे घर वालों के पास नही है।नौकरी मिल नही रही।बिजनैस करने के धन नही है।शादी की उमर भी निकलती जा रही है।यदि आप मेरी मदद करें तो में आप के धर्म को अपना लूँगा।बस फिर क्या था। कुछ ही दिनों के बाद उसकी शादी हो गई।दिल्ली मे ही एक घर अच्छी खासी सिक्योरटी दे कर किराए पर एक घर दिला दिया गया।नौकरी तो नही मिली लेकिन उसे नया थ्रीव्हीलर दिला दिया गया।वह सिख धर्म बदल कर कुछ साल तक दिल्ली मे ही रहा।लेकिन एक दिन अचानक सब कुछ बेच कर,घर के लिए दी गई सिक्योरटी ले,,अपनी पत्नी को लेकर वापिस अपने गाँव लौट गया।वहाँ पहुच कर उस ने पुन: स्वयं व अपनी पत्नी को भी सिख धर्म मे ले आया।आज वह उसी धन से छोटा-सा बिजनैस कर रहा है और मजे से रह रहा है।जिन महाशय ने उन का धर्म परिवर्तन कराया था वे आज अपना सिर धुन रहे हैं।मैं सोचता हूँ कि यदि ऐसा ही रास्ता अपना कर इन लालच देकर धर्म परिवतन करवाने वालों को सबक सिखाया जाए तो वह भी आगे से किसी को लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने से शर्मसार होगें।

Saturday, October 11, 2008

मुक्तक माला-१३

'myspace


बहुत दम है तुम्हारी बात में हम मान लेते हैं।
तुम्हारी इस अदा पर ही तो अपनी जान देते हैं।
बहुत मगरूर हो लेकिन गजब की चाल है तेरी,
मंजिल पर पहुँचते हैं वही , जो ठान लेते हैं।

******

हम मंजिल की तलाश में बहुत भटके हैं।
इस जीवन में सुख-दुख के बहुत झटके हैं।
इन से जो घबरा के रस्ते बदले अपने,
उन्हीं के रास्ते चौराहे पर आकर अटके हैं।

**********



Monday, October 6, 2008

डरते क्य़ूँ हो........


इश्क की राह पे चलनें से, डरते क्यूँ हो।
बैठे इंतजार घर पे तुम, करते क्यूँ हो।

दूर से तुम को कोई, दे रहा, सदाएं है,
अनसुना हर घड़ी इसको करते क्यूँ हो।

माना इश्क में हर हाल में रोना होगा,
रोना किस्मत है तेरी तो, डरते क्यूँ हो।

हरिक आशिक को मंजिलें नहीं मिलती,
मौत आनें से पहले ,तुम मरते क्यूँ हो।

खोया-पाया, हिसाब इस का, क्या रखें,
खाली आया था,फिकर, करते क्यूँ हो।

गर इंतजार उसका, नहीं तुम से होता है,
परमजीत जानकर आहें! भरते क्यूँ हो।

इश्क की राह पे चलनें से, डरते क्यूँ हो।
बैठे इंतजार घर पे तुम, करते क्यूँ हो।



Thursday, October 2, 2008

क्षणिकाएं

आज २ अक्टुबर है।बापू का जन्म दिन है।आप सब को इस कि बधाई।

बापू पर कुछ लिखना चाहता था ।लेकिन आज-कल के हालात देख कर अपनें मन में उठती पीड़ा को दबा ना सका सो कुछ ऐसा लिख दिया जो आज सभी देशवासियों को आहत कर रहा है।
यहाँ यह कहना उचित समझता हूँ कि मैं किसी के सिद्धांत गलत नहीं ठहरा रहा।यह सिद्धांत उस समय तो बहुत उपयोगी थे ,लेकिन आज इन का प्रभाव शायद ही कारगर हो सकेगा।इसी लिए कुछ ऐसी बातें लिख दी हैं....क्षमायाचना के साथ प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएं-



बापू!
तुम अकेले ना थे।
तुम्हारे कहनें पर कितनों ने
अपने को मिटाया।
लेकिन उन्हें
कौन याद करता है?
उन के चरणों में कोई
दो फूल धरता है?
शायद जीव का स्वाभाव है।
जो सामनें दिखता है
उसी को सलाम करते हैं।
उन्हें कौन याद करे
जो नींव की ईट बन मरते हैं।


बापू!
आज राजनेता
तुम्हारे नाम और सिद्धातों का सहारा ले
अपने को चमकाते हैं।
जिस देश के लिए
आपने गोली खाई।
उसी देश के देशवासीयों को
ये शांती से खाते हैं।


बापू!
आज आतंकवादीयों पर
आप का अहिंसावादी सिद्धांत नही चलेगा।
यदि इसी पर चलते रहे
वह दिनों दिन और फलेगा।
यदि आज एक गाल पर थपड़ खा कर
दुसरा गाल आगे करेगें।
तो दुसरे गाल पर भी थपड़ पड़ेगें।