मेरे मन में कई बार विचार आता है कि क्या हम इस जिन्दगी को जी रहे हैं.......या फिर ये जीवन हम को जी रहा है।हम सपने सजाते हैं और जीवन भर उन्हें पूरा करनें की कोशिश में लगे रहते हैं।यदि कभी कोई एक सपना सोभाग्य से कहीं पूरा हो भी जाता है तो वह अपनें साथ बीसीयों नए सपनें लेकर हमारे सामनें खड़ा हो जाता है और हम फिर उन को पूरा करनें की उधेड़्बुन में लग जाते हैं।बस सारा जीवन इसी भाग -दोड़ में चला जाता है।आखिर में जो हमारे हाथ लगता है ,वह हमे संतुष्ट नही कर पाता।हमें संतोष प्रदान नही कर पाता।हमें लगता है कि हम जो कुछ करते रहें हैं वह नाकाफी था।इतना सब कुछ होते हुए भी हम उम्मीद नहीं छोड़ते।आखिर ऐसा क्या है जो हमें सदा चलते रहनें की प्रेरणा देता रहता है।जब कि हम उसके बारे में कुछ भी तो नही जानते।कोई अज्ञात शक्ति हमें जीनें की ओर ले जाती है।या कहीं ऐसा तो नही कि हमारी यह सारी भागम भाग का कारण मौत का भय है?....
मौत दुल्हा बन इक दिन आएगा।
जिन्दगी दुल्हन को संग ले जाएगा।
मन सजाता बाँवरा सपनें यहाँ,
परमजीत इक दिन बहुत पछताएगा।
हो ना सकेगें, सपनें, तेरे सच कभी।
जानता है, बिखरेगें, सब ही यहीं।
ठहरना इसको सुहाता है कहाँ,
पड़नें लगी है इसको, कम, अब जमीं।
वक्त से पहले मगर मन मर नहीं।
इक दिन अपने,यार से मिल पाएगा।
उम्मीद दिल में ले के,ये चलते रहो,
परमजीत पहुँच इक दिन जाएगा।