हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Thursday, August 13, 2009
सपनो की छाया तले.....
सपनो की छाया तले हम जी रहे हैं ।
आज अपना ही लहू हम पी रहे हैं ।
नेह मर चुका, अर्थ की सत्ता बढी है,
सत्य के होठों को हम सब सी रहे हैं।
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।
था कभी वह वक्त, सत्य पूजा जाता।
झूठ उस के सामने था, तड़्फड़ाता।
आज घुटकर मर रहा रोता अकेला,
चल रही है साँस ,आँसू पी रहे हैं।
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।
कौन अब इसको बचाएगा धरा पर?
सत्य का खोजी इसे जब मारता हो।
झूठ जब चड़कर, सिंहासन पर हो बैठा,
न्याय की उम्मीद में क्यों जी रहे हैं?
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।
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सत्य के होठों को हम सी रहे हैं------ आज जिस तरह हम लोग बदल रहे हैं उसका सही सटीक चित्रण किया है बहुत ही सुन्दर कविता है बधाई और धन्यवाद्
ReplyDeletewaah bhaaji waah !
ReplyDeletedil khol k badhaaiyaan............
bahut hi umda kaavya..........
बेहतरीन रचना...बहुत बहुत
ReplyDeleteसपने आंखों में पाले हुए
ReplyDeleteआंखें बंद किए हम जी रहे हैं
बाली जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना...
सत्य का समावेश है कविता मे,
बधाई..
सपने आंखों में पाले हुए,
ReplyDeleteआंखे बंद किए हम जी रहे हैं,
बहुत ही बेहतरीन रचना आभार्
बाली जी आपने रचाना को पूरी तरह से यथार्थ से जोडकर .......दर्द को सजीव कर कर दिया है ........आपके दर्द को मै ही नही बल्कि हर एक पाठक महसूस कर सकता है, यह सिर्फ आपका ही दर्द नही है बल्कि आज का सत्य बन गया है ........अतिसुन्दर ......बधाई
ReplyDeleteवाह! क्या चित्र रख दिया है आपने सब के सामने। मैने गुनगुनाया बहोत ही करुण भाव उभरकर आये। सुंदर अदभुत।
ReplyDeleteaadarniy baali ji ,aapne bahut acchi nazm likhi hai dard ko darshaate hue.. sapno ki sahi daastan hai .....
ReplyDeletenamaskar.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
sundar rachna...............badhayi
ReplyDeleteबहुत ही सुक्ष्म अनुभुतियों को आपने सुंदर तरीके से इस रचना में पिरो दिया है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeletebhut hi achhi
ReplyDeleteबेहतरीन रचना है बहुत पसंद आयी
ReplyDeleteaaj ka sach yahi hai,juth singhasan par baitha raaj kar raha hai aur satya jail mein band sad raha hai,ek bahut hi achhi samayik rachana badhai.
ReplyDeleteसपने आंखों में पाले हुए,
ReplyDeleteआंखे बंद किए हम जी रहे हैं,
अच्छी कविता है ।
BILKUL SATY LIKHA HAI....AAJ SAMAY BADAL GAYA HAI.....JHOOTH HAIN SAB META LOG....KOI BHI UMEED BAIKAAR HAI...... LAJAWAAB LIKHA HAI
ReplyDeleteBahut khoob.
ReplyDeleteBali ji,
ReplyDeletebahut hi sundar aur saarthak rachna..
badhaai sweekaar karein.
नेह मर चुका....सच बात है अगर समझें हम
ReplyDeletebahut achchhi bhai paranjit ji
ReplyDeletemggarga
बहुत ही बेहतरीन रचना.
ReplyDeletesapno ki chhaya tale jeene mein burai nahi hai....bas haqiqat ka ehsaas saath hona chahiye
ReplyDeleteइस बदलते समय में इंसान अपने को बचा के रख सके .वही उपलब्धि होगी । समय को बोलती सुंदर रचना ।
ReplyDeletebahut khoobsurat rachana.
ReplyDeleteछोटी सी कविता में बहुत ही अच्छा चित्रण किए हैं.
ReplyDeleteधन्यवाद.
महेश
http://popularindia.blogspot.com/
aapne to kamal likh diya baali ji..
ReplyDeletefeeling like m reading the best write of my life..
so true said so well...
awesome write i wud say ..
post karne ka shukriya baali sahab..
Adarneeya Bali sahab,
ReplyDeleteaaj ke halat ko bayan karatee behatreen rachna hai apkee.
Svatantrata divas kii hardik mangalkamnayen sveekar karen.
कौन अब इसको बचाएगा धरा पर?
ReplyDeleteसत्य का खोजी इसे जब मारता हो।
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क्या सशक्त पंक्तियां हैं!
सपनो की छाया भी मिलीरहे वही बहुत है अब तो -अच्छी रचना !
ReplyDeleterachna bahut achchhi lagi...badhaai...
ReplyDeletemere paas kuchh bhi nahin kahne ko....main ro padaa hun....yah padhkar.....nahin-nahin...mahsoos kar.....!!
ReplyDeleteमेरे पास कुछ भी नहीं कहने को....मैं रो पडा हूँ....यह पढ़कर.....नहीं-नहीं...महसूस कर.....!!
ReplyDeleteवाह वाह परमजीत भाई आपके इस ब्लाग का पता तो आज ही चला. रचना अद्भुत है.
ReplyDeleteअच्छी रचना ... बधाई..
ReplyDeleteयमय की जमीनी हकीक़त को बयान करती एक भावभीनी रचना....बधाई.
ReplyDeleteसमय की जमीनी हकीक़त को बयान करती एक भावभीनी रचना....बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूब बाली साहब, मेरे भी अंतर्मन के विचार कुछ ऐसे ही है, जैसे आपने प्रस्तुत किये !
ReplyDeleteसच का आना दिखाती रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
बधाई।
सच का आइना दिखाती रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
बधाई।
बेहतरीन रचना...
ReplyDeletebahut sunder sachhi rachna hai
ReplyDeleteथा कभी वह वक्त, सत्य पूजा जाता
ReplyDeleteझूठ उस के सामने था, तड़फड़ाता
आज घुटकर मर रहा रोता अकेला
चल रही है सांस, आँसू पी रहे हैं.
सपनों की छाया टेल हम जी रहे हैं.
बहुत सुन्दर कविता है. सच्चाई उजागर की है आपने.
महावीर शर्मा
sundar rachna.......miracle par dastak dene ka dhanyawad..aapk hamesha swagat hai....
ReplyDeleteभाई, चावल के एक दाने को छूने से पता चल जाता है कि देग के अंदर का क्या हाल है. इस एक रचना ने ने ही सारी दास्तान सुनाकर शर्मिंदा कर दिया. सच, मैं बेहद अफ़सोस में हूँ कि इस ब्लॉग पर निगाह अबतक क्यों नहीं पड़ी थी. बन्धु इन तेवरों को बनाये रखना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एक दम सजीब चित्रण
ReplyDeletenice..............nice..............nice.........
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना बाली जी,
ReplyDeletekam shbdo me bhut kuch kh diya hai .
ReplyDeletebdhai
bali ji sundar rachanaa ke liye badhaaee sveekaare satya kaa yah haal to hameshaa se raha hai fir bhee jeevana me satya hee kaam aataa hai
ReplyDeletebahut hi achchi kavita..... sach ko dikhaati
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी ये रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन रचा है आपने | बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteआप की कविता में आज का बेहतरीन चित्रण है । बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ पर आप सभी मेरे ब्लोग पर पधार कर मुझे आशीश देकर प्रोत्साहित करें ।
” मेरी कलाकृतियों को आपका विश्वास मिला
बीत गया साल आप लोगों का इतना प्यार मिला”
न्याय की तलाश में आपने सत्य का प्रकटीकरण किया है.
ReplyDeleteधन्यवाद आपके गीतों/कविताओं का...