Thursday, August 13, 2009

सपनो की छाया तले.....


सपनो की छाया तले हम जी रहे हैं ।
आज अपना ही लहू हम पी रहे हैं ।
नेह मर चुका, अर्थ की सत्ता बढी है,
सत्य के होठों को हम सब सी रहे हैं।
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।

था कभी वह वक्त, सत्य पूजा जाता।
झूठ उस के सामने था, तड़्फड़ाता।
आज घुटकर मर रहा रोता अकेला,
चल रही है साँस ,आँसू पी रहे हैं।
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।

कौन अब इसको बचाएगा धरा पर?
सत्य का खोजी इसे जब मारता हो।
झूठ जब चड़कर, सिंहासन पर हो बैठा,
न्याय की उम्मीद में क्यों जी रहे हैं?
सपनों की छाया तले हम जी रहे हैं।

54 comments:

  1. सत्य के होठों को हम सी रहे हैं------ आज जिस तरह हम लोग बदल रहे हैं उसका सही सटीक चित्रण किया है बहुत ही सुन्दर कविता है बधाई और धन्यवाद्

    ReplyDelete
  2. waah bhaaji waah !
    dil khol k badhaaiyaan............
    bahut hi umda kaavya..........

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन रचना...बहुत बहुत

    ReplyDelete
  4. सपने आंखों में पाले हुए
    आंखें बंद किए हम जी रहे हैं

    ReplyDelete
  5. बाली जी,
    बहुत ही सुंदर रचना...
    सत्य का समावेश है कविता मे,
    बधाई..

    ReplyDelete
  6. सपने आंखों में पाले हुए,
    आंखे बंद किए हम जी रहे हैं,

    बहुत ही बेहतरीन रचना आभार्

    ReplyDelete
  7. बाली जी आपने रचाना को पूरी तरह से यथार्थ से जोडकर .......दर्द को सजीव कर कर दिया है ........आपके दर्द को मै ही नही बल्कि हर एक पाठक महसूस कर सकता है, यह सिर्फ आपका ही दर्द नही है बल्कि आज का सत्य बन गया है ........अतिसुन्दर ......बधाई

    ReplyDelete
  8. वाह! क्या चित्र रख दिया है आपने सब के सामने। मैने गुनगुनाया बहोत ही करुण भाव उभरकर आये। सुंदर अदभुत।

    ReplyDelete
  9. aadarniy baali ji ,aapne bahut acchi nazm likhi hai dard ko darshaate hue.. sapno ki sahi daastan hai .....


    namaskar.

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. बहुत ही सुक्ष्म अनुभुतियों को आपने सुंदर तरीके से इस रचना में पिरो दिया है. बहुत शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन रचना है बहुत पसंद आयी

    ReplyDelete
  12. aaj ka sach yahi hai,juth singhasan par baitha raaj kar raha hai aur satya jail mein band sad raha hai,ek bahut hi achhi samayik rachana badhai.

    ReplyDelete
  13. सपने आंखों में पाले हुए,
    आंखे बंद किए हम जी रहे हैं,

    अच्छी कविता है ।

    ReplyDelete
  14. BILKUL SATY LIKHA HAI....AAJ SAMAY BADAL GAYA HAI.....JHOOTH HAIN SAB META LOG....KOI BHI UMEED BAIKAAR HAI...... LAJAWAAB LIKHA HAI

    ReplyDelete
  15. Bali ji,
    bahut hi sundar aur saarthak rachna..
    badhaai sweekaar karein.

    ReplyDelete
  16. नेह मर चुका....सच बात है अगर समझें हम

    ReplyDelete
  17. बहुत ही बेहतरीन रचना.

    ReplyDelete
  18. sapno ki chhaya tale jeene mein burai nahi hai....bas haqiqat ka ehsaas saath hona chahiye

    ReplyDelete
  19. इस बदलते समय में इंसान अपने को बचा के रख सके .वही उपलब्धि होगी । समय को बोलती सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  20. छोटी सी कविता में बहुत ही अच्छा चित्रण किए हैं.
    धन्यवाद.

    महेश
    http://popularindia.blogspot.com/

    ReplyDelete
  21. aapne to kamal likh diya baali ji..

    feeling like m reading the best write of my life..

    so true said so well...

    awesome write i wud say ..

    post karne ka shukriya baali sahab..

    ReplyDelete
  22. Adarneeya Bali sahab,
    aaj ke halat ko bayan karatee behatreen rachna hai apkee.
    Svatantrata divas kii hardik mangalkamnayen sveekar karen.

    ReplyDelete
  23. कौन अब इसको बचाएगा धरा पर?
    सत्य का खोजी इसे जब मारता हो।
    ---------
    क्या सशक्त पंक्तियां हैं!

    ReplyDelete
  24. सपनो की छाया भी मिलीरहे वही बहुत है अब तो -अच्छी रचना !

    ReplyDelete
  25. mere paas kuchh bhi nahin kahne ko....main ro padaa hun....yah padhkar.....nahin-nahin...mahsoos kar.....!!

    ReplyDelete
  26. मेरे पास कुछ भी नहीं कहने को....मैं रो पडा हूँ....यह पढ़कर.....नहीं-नहीं...महसूस कर.....!!

    ReplyDelete
  27. वाह वाह परमजीत भाई आपके इस ब्लाग का पता तो आज ही चला. रचना अद्भुत है.

    ReplyDelete
  28. अच्छी रचना ... बधाई..

    ReplyDelete
  29. यमय की जमीनी हकीक़त को बयान करती एक भावभीनी रचना....बधाई.

    ReplyDelete
  30. समय की जमीनी हकीक़त को बयान करती एक भावभीनी रचना....बधाई.

    ReplyDelete
  31. बहुत खूब बाली साहब, मेरे भी अंतर्मन के विचार कुछ ऐसे ही है, जैसे आपने प्रस्तुत किये !

    ReplyDelete
  32. सच का आना दिखाती रचना।
    बेहतरीन प्रस्तुति।
    बधाई।

    ReplyDelete
  33. सच का आइना दिखाती रचना।
    बेहतरीन प्रस्तुति।
    बधाई।

    ReplyDelete
  34. था कभी वह वक्त, सत्य पूजा जाता
    झूठ उस के सामने था, तड़फड़ाता
    आज घुटकर मर रहा रोता अकेला
    चल रही है सांस, आँसू पी रहे हैं.
    सपनों की छाया टेल हम जी रहे हैं.
    बहुत सुन्दर कविता है. सच्चाई उजागर की है आपने.
    महावीर शर्मा

    ReplyDelete
  35. sundar rachna.......miracle par dastak dene ka dhanyawad..aapk hamesha swagat hai....

    ReplyDelete
  36. भाई, चावल के एक दाने को छूने से पता चल जाता है कि देग के अंदर का क्या हाल है. इस एक रचना ने ने ही सारी दास्तान सुनाकर शर्मिंदा कर दिया. सच, मैं बेहद अफ़सोस में हूँ कि इस ब्लॉग पर निगाह अबतक क्यों नहीं पड़ी थी. बन्धु इन तेवरों को बनाये रखना.

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर एक दम सजीब चित्रण

    ReplyDelete
  38. अति सुन्दर रचना बाली जी,

    ReplyDelete
  39. bali ji sundar rachanaa ke liye badhaaee sveekaare satya kaa yah haal to hameshaa se raha hai fir bhee jeevana me satya hee kaam aataa hai

    ReplyDelete
  40. बेहतरीन रचा है आपने | बहुत सुन्दर |

    ReplyDelete
  41. आप की कविता में आज का बेहतरीन चित्रण है । बधाई
    मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ पर आप सभी मेरे ब्लोग पर पधार कर मुझे आशीश देकर प्रोत्साहित करें ।
    ” मेरी कलाकृतियों को आपका विश्वास मिला
    बीत गया साल आप लोगों का इतना प्यार मिला”

    ReplyDelete
  42. न्याय की तलाश में आपने सत्य का प्रकटीकरण किया है.
    धन्यवाद आपके गीतों/कविताओं का...

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।