हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Wednesday, November 25, 2009
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम....
बस उम्मीदों के साये मे जी रहे हम।
आज अपना ही लहू पी रहे हैं हम।
कौन हमको हमसे बचाएगा यहाँ आज,
होठ सच के मिल यहाँ, सी रहे हैं हम।
घुट घुट के निकल रहा आज अपना दम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।
प्यार पैसा बन गया हर नजर में आज।
रिश्ते पैसों से बनें , कैसा है रिवाज़।
ईमानदारी चौराहे पर खड़ी हुई,
रोते रोते गा रही, बिठा रही है साज़।
अपना ही तमाशा आज देखते हैं हम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।
उलाहनें तुम्हें यहाँ बेईमान दे रहा।
तेरी बेबसी,वो रोटी अपनी सेंकता।
सहन करना तेरा, आज भाग्य है बना,
किस उम्मीद पर ऊपर तू है देखता?
खुदा की नजर भी तुझपे पड़ रही है कम।
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।
माँ-बाप बेटों पर आज बोझ बन गये।
कहीं पर माँ-बाप बेटो में हैं बँट गये।
लक्ष्मी समझ, जिसे खुशी से लाए थे घर,
आते ही उसके घर मातम से भर गये।
ये कैसी सोच से यारों भर गए हैं हम?
आज कैसे कर रहे हैं देखो हम करम।
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धरातल से जुड़ी यथार्थवादी रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना। बधाई।
ReplyDeleteबेहतरीन भावपूर्ण रचना!! वाह!
ReplyDeleteसत्य को उजाकर करती सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteregards
yatharth ko chitrit karti ek bahut hi behtareen kavita......
ReplyDeleteेआज कैसे कर रहे हैं देखो करम
ReplyDeleteबहुत बेबाकी से यथार्थ को उजागर करती सुन्दर अभिव्यक्ति है। लगता आज मानव मानव ही नहीं रहा सब कुछ उस्के स्वार्थ ने निगल लिया है । संवेदनायें मर सी गयी हैं बहुत सही कहा आपने शुभकामनायें
अच्छी और सच्ची रचना।
ReplyDeleteकितनी सच्ची बात इस रचना में आपने सहजता के साथ कही, लाजवाब प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआज के कडुवे सच को बहुत बेबाकी से उभारा है आपने अपनी इस रचना में...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
bahut hi bhavmayi rachna.
ReplyDeleteज़िन्दगी के सारे चेहरे गडमड हो चले हैं
ReplyDeletedino baad aapke darshan huye hain... bebaaki se likhi gayee rachanaa ... badhaayee kubul karen huzoor,,...
ReplyDeletearsh
कटु सत्य
ReplyDeleteओह, आपकी पोस्ट में छलकता नैराश्य तो सर्वत्र पसरा है बाली जी। बस देखने को निगाह चाहिये।
ReplyDeleteकड़वे सच लिखे हैं।
ReplyDeleteआज के परिवेश को दिखाती सशक्त रचना---
ReplyDeleteपूनम
बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने आज के समाज की सच्चाई बयान की है।
ReplyDeleteहेमन्त कुमार
सुंदर.
ReplyDeleteवास्तविकता से परिपूर्ण ..............
ReplyDeleteउलाहने तुम्हें यहां बेईमान दे रहा है..
ReplyDeleteकिस उम्मीद पर तू ऊपर देखता है..
शानदार लाइन हैं.. पढ़कर मज़ा आ गया...