हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Tuesday, December 15, 2009
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए.....
फिर कहीं राख को कोई कुरेद रहा।
चिंगारी कहीं कोई ना भड़क जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।
बहुत सोच समझ कर उठाना ये कदम अपना।
कदम कदम पे बारूद मुझ को दिखता है।
आज पैसो की खातिर मेरे वतन मे यारों
जीना मरना भी यहाँ अब बिकता है।
कहीं मोहरा बन के उनके हाथों का,
कोड़ीयों के भाव ना कहीं तू बिक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।
खेल ये खेलते है जिन की नजर कुर्सी हैं।
कुर्सी की खातिर जो सदा जीते मरते हैं।
जानता मैं भी हूँ ,तू भी जानता है उन्हें,
फिर क्यूँ उन की बात पर यकी करते हैं?
हरिक बार करते हैं वो सच का दावा,
कहीं उन के दावे पर ना तू बहक जाए।
नफरत की इस आँधी में कहीं यारो,
कोई घर ना फिर से उजड़ जाए।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बेहतरीन ...सुंदर शब्दों के साथ ...बहुत सुंदर रचना......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संदेश देती रचना, बधाई.
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक और सा्र्थक रचना .....
ReplyDeleteअजय कुमार झा
वास्तविक परिस्थिति का चित्रांकन ! सुन्दर रचना । आभार ।
ReplyDeletebehtreen shabd ......behtreen abhivyakti...........yatharth ka chitran.
ReplyDeleteएक आम भारतीय की मनोदशा की दर्शाती अंतर्मन में कंपन पैदा करने वाली एक बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबेहतरीन ......... सच कहा है ...... इस घर को उजाड़ने से बचाना है ....
ReplyDeleteशब्द अगर सुन्दर होते हैं तो रचनाएं खुदबखुद सुन्दर बन पड़ती हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार
ReplyDeleteबहुत सार्थक कहा आपने!
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
बिलकुल सही कहा है बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश बधाई
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeletebehtareen rachna ...ek bahut hi achha sandesh liye huye.
ReplyDeleteबहुत सामयिक और दिल से निकली हुई कविता । मेरे दिल में भी कुछ ऐसा ही घुमडता रहता है ।
ReplyDeleteआपने तो तकरीबन वही बात अपनी रचना के माध्यम से बड़ी सफाई से कह दी जो हम भी कहने की कोशिश कर रहे हैं. इस सफल रचना के लिए बधाई. यार, आप अनुपस्थित बहुत होते हो, जरा जल्दी जल्दी मिला करो ना!
ReplyDeleteIs arthpurn rachna ke liye badhai swikar karen.
ReplyDeleteनफरत की इस आँधी में कहीं यारों
ReplyDeleteकोई घर ना फिर से उजड़ जाय
--वाह!
Bahut achchhee aur samayik rachana---
ReplyDeletesach he, bahut achhe shbdo ke saath aapne yathaarth ko ukeraa he..
ReplyDeleteवाह वाह. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसही चित्रण किया है आपने. सन्देश देती आँखे खोलती रचना
ReplyDeleteek jagruk kavi ki abhivyakti,shubhkamnayen
ReplyDelete