हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Saturday, February 5, 2011
एक दिशाविहीन सफर............
फूल बिखरे
मन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।
चल रहे हैं सब मगर
लेकिन पता नही पास है।
पहँच जायेगें कभी
हर एक मन में आस है।
है आस का ही आसरा
तोड़े नही उम्मीद को।
जिसने जगाई आस ये
छोड़े कभी ना साथ वो।
उसके बिना नही सोच सकते
जायेगें हम
फिर कहाँ।
जानता कोई नही
क्युँ आया है
वो यहाँ।
एक दिन यही सोचते
खो जायेगा
अपना जहाँ।
फूल बिखरे
मन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।
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राह देगी यह धरा, दिशा देगा आसमां।
ReplyDeleteगगन पंछी उड़ चलेंगे, बढ़ चलेगा कारवां।
बढ़िया , ये मन ही भ्रम में डालता है , एक दिन बैठ कर सोचता भी जरुर है , और सच बात ये है कि दिशा बदलते ही दशा बदल जाती है ..
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteफूल बिखरे
ReplyDeleteमन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।
सच कहा हर मन की व्यथा को चित्रित कर दिया…………मगर दिशाविहीन सफ़र नही है ये एक दिन मंज़िल जरूर मिलेगी।
वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्द रचना ।
ReplyDeleteman ke dard ko bahut khubsurati se aapne chitrit kiya hai...badhai:)
ReplyDeleteराह देगी यह धरा, दिशा देगा आसमां।
ReplyDeleteगगन पंछी उड़ चलेंगे, बढ़ चलेगा कारवां।
खूबसूरत शब्द रचना ।
कौन जाने किस दिशा में जाएगा ये कारवाँ ! बहुत अच्छी रचना !!
ReplyDeleteबेहतरीन .... सच में कभी कभी लगता है जीवन का सफ़र दिशाविहीन .....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना!
ReplyDeleteमन की कशमकश को खूब भावों मे उडेला है। लेकिन चलते जाना ही ज़िन्दगी है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteअध्यात्मिक पुट लिए हुए आप की कविता ज़िन्दगी का सच तलाश रही है.
ReplyDeleteआप की कलम को सलाम
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteचल रहे हैं सब मगर
ReplyDeleteलेकिन पता नही पास है।
पहँच जायेगें कभी
हर एक मन में आस है
बहुत सुंदर पंकितयां है, या यूँ कहें की यथार्थ ही तो है.
आदरणीय परमजीत सिंह बाली जी
ReplyDeleteनमस्कार !
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ… बहुत सुंदर रचना है बधाई !
बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
ReplyDeleteकौन जाने किस दिशा में जा रहा है कारवां !
ReplyDeleteमन को छू लिया बाली साहब !
शुभकामनायें
प्रवीण पांडेय जी ने सही कहा। बस साहस नही छोडना चाहिये कारवाँ रास्ता ढूँढ ही लेता है। अच्छी लगी रचना। बधाई।
ReplyDeleteYes! 1 din to sabhi ko jaana hi hai..aur ye mazedaar bhi hai, kyonki ye 1 sure cheej hai..saaray dukhon se mukti mil jaani hai..
ReplyDeleteफूल बिखरे
ReplyDeleteमन भी बिखरा
भाव बिखरे सब यहाँ।
कौन जाने किस दिशा में
जायेगा ये कारवाँ।
bhavpurn abhivyakti k lye badhai ...
चलते ही रहें मंजिल तो एक दिन मिलनी ही है कुछ देर से ही सही बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteShriman Ji,
ReplyDeleteAapka Lekhan Bahut Hi Sundar Laga, itna sundar laga ki hum khud ko rok nahi paye...
Tippani Kar di..