हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Monday, April 18, 2011
एक विरह गीत.....
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
हर शाख पूछती है आकाश को जब देखे;
तू दूर इतना क्यूँ है कैसे फूल चड़ाऊँगा।
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
हर बार हारता हूँ जब भी बढ़ा मैं आगे।
हर रात सब सोते हैं क्यूँ नैन मेरे जागे।
है हर तरफ अंधेरा भय मन पे छा रहा है;
ऐसे मे भला कैसे मैं तुझ तक आऊँगा।
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
अब राह कोई मुझको तूही जरा बता दे।
कहाँ वो रोशनी है मुझ को जरा दिखा दे।
कहीं खो ना जाऊँ मै इन अंधे रास्तो पर;
जीवन -भर क्या यूँही ठोकरें... खाऊँगा।
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
अक्सर मेरे भीतर तू बोलता रहता है।
मैं सुन नही पाता तू जो सदा कहता है।
बाहर नही है तुझसे कोई भी शै यहाँ पर;
पर मैं ना समझ हूँ फिर भूल ये जाऊँगा।
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
ReplyDeleteअब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
ReplyDeleteअब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
बाहर नही है तुझसे कोई भी शै यहाँ पर;
ReplyDeleteपर मैं ना समझ हूँ फिर भूल ये जाऊँगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति ..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजो उसने दिया वह तो कोई भी नहीं लौटा सकता
ReplyDeleteऔर वो देने वाला है, देता है और लौटने के लिए नहीं देता है.
हम सब उसकी कृपा से कृतज्ञ हैं।
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteशानदार, बधाई.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आयें, आपका स्वागत है
मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
बाहर नही है तुझसे कोई भी शै यहाँ पर;
ReplyDeleteपर मैं ना समझ हूँ फिर भूल ये जाऊँगा
bahut khoobsoorat
sahityasurbhi.blogspot.com
बाहर नही है तुझसे कोई भी शै यहाँ पर;
ReplyDeleteपर मैं ना समझ हूँ फिर भूल ये जाऊँगा।
समर्पित भाव....
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
ReplyDeleteअब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।
बहुत गहरी बात कह दी आप ने इन चार लाईनो मे जी बहुत सुंदर, धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....सुंदर पावन भाव
ReplyDeleteविरहगीत, मन की भावनाओ का प्रवाह अच्छा लगा। शुभकामनायें।
ReplyDeleteभावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....सुंदर पावन भाव
ReplyDeletejanm din ki bahut bahut badhai
wah ji wah...khubsurat rachna..
ReplyDeletebahut khoobsurat.....
ReplyDeletejidhar dekhti hoon,udhar tu hi tu hai.......bahut badhiya.....thanks
ReplyDeleteहर बार हारता हूँ जब भी बढ़ा मैं आगे।
ReplyDeleteहर रात सब सोते हैं क्यूँ नैन मेरे जागे।
है हर तरफ अंधेरा भय मन पे छा रहा है;
ऐसे मे भला कैसे मैं तुझ तक आऊँगा।----------आदरणीय सर,बहुत ही सुन्दर विरह गीत पढ़वाने के लिये आभार।
"अक्सर मेरे भीतर तू बोलता रहता है।
ReplyDeleteमैं सुन नही पाता तू जो सदा कहता है।
बाहर नही है तुझसे कोई भी शै यहाँ पर;
पर मैं ना समझ हूँ फिर भूल ये जाऊँगा।
जो तूने दिया मुझको लौटा नही पाऊँगा।
अब छोड के तुझको. कहीं नही जाऊँगा।"
सुन्दर प्रस्तुति....हर एक मन की यही अवस्था होती है...न हम उस से जुदा है न उसे पहचान रहे है....
कुंवर जी,