ना जानें क्यूँ ये तन्हाई मुझे भानें लगी।
तेरी यादों की परियां गीत फिर गाने लगी।
यहाँ कोई भी मेरे साथ हसँता है ना रोता है,
यही इक सोच मुझको फिर तड़पाने लगी।
कभी पंछी-सा मन उड़ता था आकाश में,
बस !यही बात मुझको फिर सताने लगी।
जहाँ भी देखता हूँ अब मुझे पतझड़ लगे,
बहारें भी मुझसे मुँह फैर , जाने लगी।
ना होती याद तो किसके सहारे जी रहा होता,
तन्हाई मुझे ये राज फिर समझाने लगी।
ना जानें क्यूँ ये तन्हाई मुझे भानें लगी।
तेरी यादों की परियां गीत फिर गाने लगी।
यहां कोई भी मेरे साथ हंसता है ना रोता है,
ReplyDeleteयही इक सोच मुझको फिर तड़फ़ाने लगी।
बहुत ख़ूब।
यादों की परियाँ, यूँ ही गीत गाती रहें,
ReplyDeleteतड़पा तो गयी हैं और तड़पाती रहें।
aisee kya khasiyat hai tanhai me:)
ReplyDeletebahut khubsurat rachna...
सुंदर भावाभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव भरी गज़ल्।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteएकाकीपन पर सुन्दर ग़ज़ल .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसुन्दर रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
ReplyDeleteबाली जी बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आई हूँ ।
ReplyDeleteऔर एक अलग सा अंदाज़ देखने को मिला है । तनहाई भी कभी कभी रास आ ही जाती है ।