शब्द क्यूँ रूठ कर बैठ गया.
बादलों की छाँव मे ऐंठ गया
हम रात भर तुझे तलाशते रहे
तू ना जानें कहाँ जाके. लेट गया।
*******************************
जब भीतर का शॊर गुम हो जाता है।
आदमी खुद से भी बहुत डर जाता है।
आहट सुनने की चाह में आतुर हो कर-
भीतर कुछ मर गया जान पाता है।
*******************************
जब भीतर का शोर चुक जाता है।
दुनिया का रंग भी बदल जाता है।
आदमी सोचता है कुछ मगर होता है कुछ
ये दुनिया भी तो गज़ब तमाशा है।
*******************************
अन्दर का मौन सर्वाधिक कोलाहल करता है।
ReplyDeleteSach kaha hai insaan apne andar ke sannate se hi data hai .... Umda gahri Sochi ..
ReplyDeleteगहन भावों का समावेश ...भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteभीतर का शोर समाप्त होते ही विचारों की उड़ान कहीं और ही ले जाती है.
ReplyDeleteYour thoughts are reflection of mass people. We invite you to write on our National News Portal. email us
ReplyDeleteEmail us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com
Bhut khub javab nahi...
ReplyDelete