जिन्दगी मे खुशी और पाये हैं, कितने गम।
कौन है दोस्त और दुश्मन हमारा कौन यहाँ-
रोते आए थे ,क्या रोते हुए ही जायेगें हम।
देख दुनिया का तमाशा तुझे करना क्या है।
एक दिन मरना है तो मौत से डरना क्या है।
अपने को पहचान ले,गर सच में जीना है-
बेहोशी में गर जी लिये तो,ये जीना क्या है।
प्रेम के बदले जो, प्रेम की चाह करता है।
अपना बन के वही दोस्त छला करता है।
प्रेमी प्रेम के बदले , कुछ चाहता ही नही-
उसी की खातिर जीता है और मरता है।
स्वयं को पहचानना ही ध्येय हो।
ReplyDelete्सुन्दर भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteजीवन में रोजमर्रा की उठापटक का सुंदर लेखाजोखा समाहित है इस सुंदर कविता में.
ReplyDeleteवाह ,,, बहुत उम्दा,लाजबाब कविता ....
ReplyDeleterecent post: रूप संवारा नहीं,,,
खुद को पहचान लिया तो सब कुछ पा लिया ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
सादर निमंत्रण,
ReplyDeleteअपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्त लिया है आपने मनोभावों को. आभार.भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
ReplyDeleteप्रेमी प्रेम के बदले कुछ चाहता ही नहीं
ReplyDeleteउसी की खातिर जिन्दा है और मरता है.
बहुत उम्दा भाव. सुंदर प्रस्तुति.
सच्चे प्रेम में स्वार्थ की कोई जगह नही । वह तो सिर्फ देना जानता है ।
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