बरसा बादल जग डूब गया,
जब अपना कोई रूठ गया।
निरव खग का सब कोलाहल,
क्या पवन वेग से दोड़ेगी।
क्या नदिया सरपट उछल उछल
पर्वत की छाती फोड़ेगी।
ये कैसा मन बोध मुझे
मेरे सपनों को लूट गया।
बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।
प्रियतम का विरह ऐसा ही
क्या होता सब के जीवन में ,
अमृत भी विष-सा लगता है
तृष्णा में वारी पीवन में ।
क्रंदन करती हर दिशा लगे
काला बादल ज्यों फूट गया।
बरसा बादल जग डूब गया
जब अपना कोई रूठ गया।
bahut badiya
ReplyDeleterecent post
Gmail के खाली स्पेस को ले हार्ड ड्राइव के रूप में उपयोग
अपनों के जाने का असर बहुत गहरा होता है ...
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है .बेहतरीन भाव हैं
ReplyDeleteमौसम कभी क्रूर रूप भी हासिल कर लेता है.
ReplyDeleteसुंदर भाव, सुंदर प्रस्तुति.
गहरे भाव..
ReplyDeleteअति मार्मिक कविता.. जान के दुःख हुआ.. इश्वर आपको शक्ति दें
ReplyDeleteBermuda yurtdışı kargo
ReplyDeleteBonaire yurtdışı kargo
Bolivya yurtdışı kargo
Birleşik Arap Emirlikleri yurtdışı kargo
Bhutanya yurtdışı kargo
FKF