Sunday, June 3, 2007

शिकायत क्या करें..

मैने देखीहै तेरे लफ्जोंमें अपनी तस्वीर।
तेरा मुकरना ना मुझे कभी सताएगा।
याद करे न करे तू मरजी है तेरी ,
ये बन्दा हरिक हाल में मुसकराएगा।


बहुत नाजो से सम्भाला दिल मे हमनें।
इस जमानेंके जुल्मो-सितम सहते हुए।
कैसे टूट्नें दूँ आईना-ए-दिल नाजुक है,
लहू ना ये थम सकेगा फिर बहते हुए।


इस दिल में तस्वीर तेरी सजा रखी है।
कई जनमो से तेरी रहगुजर तकते हुए।
मालूम है, ना आए हो ना आओगे कभी,
भले तन्हां चले जाए हम सिसकते हुए।


जो भूले हैं उनसे शिकायत क्या करे
हरिक शब में हमे गम ये सताएगा।
ठोकरे खाएगा भटकेगा तन्हाइयों में,
दिल दिवाना है दिवाना बस गाएगा।

2 comments:

  1. "मालूम है, ना आए हो ना आओगे कभी,
    भले तन्हां चले जाए हम सिसकते हुए।"

    बहुत ख़ूब जनाब! मुक्त छन्द में काफि माहिर हैं आप,
    बहुत अछे ।

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