१.
मुझे नहीं पहुँचना
कहीं दूर देश में या ग्रह पर
वहाँ वही समस्याएं होगीं
जो यहाँ हैं।
मुझे नही चढना
तरक्की के शिखरों को चूमनें
दुनिया में महाशक्ति
बननें की चाह में।
मुझे तो इतना ही चाहिए।
तुम मेरे मन में
मै तुम्हारे मन में
मरने के बाद जीता रहूँ।
तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
बस सदा पीता रहूँ।
२.
तुम सैनिक हो
तो आओं मै निमंत्रण देता हूँ-
तुम्हें मर-मिटने के लिए
लेकिन किसी देश के विरूध
लड़नें हेतु नही।
संपूर्ण विश्व ने
जिसे बंन्दी बनाया।
स्वार्थ पूर्ति हेतु
जिसे अक्सर जलाया।
उस भीतर छुपी
इन्सानियत को
आजाद कर दो।
अपने भीतर छुपी
स्नेह बूँद से
उसे भर दो।
बडे गहरे भाव है परमजीत जी..कविता सुन्दर है..
ReplyDeleteबधाई.
दोनों कविताएँ अच्छी लगीं । साधुवाद ।
ReplyDeleteकवितायें बढ़िया हैं बाली जी. पर विनम्रता की जगह कभी जोश पर भी लिखियेगा:
ReplyDeleteजब मिले काल, जय महाकाल बोलो रे!
सत श्री अकाल! सत श्री अकाल! बोलो रे! (दिनकर)
सुन्दर भाव है बाली जी दोनो कविताओं में और मुझे नही लगा के ये अधूरी कविताऐं हैं दोनो अपने आप में पूर्ण हैं.
ReplyDeleteमन का संतोष ही सभी सुखो का स्त्रोत है
दूसरा
मन के अहम को मार दिया तो जग विजय किया
बहुत अच्छे भाव हैं
ReplyDeleteकवि कुलवंत
बहूत खूब बाली जी हमेशा की तरह कम शब्दो मे सटीक अभिव्यक्ति, साधुवाद
ReplyDeleteपरमजीत जी..
ReplyDeleteबहुत गहरी गहरी बातें लिखी हैं आपने अपनी रचनाओं में, विशेषकर:
"मै तुम्हारे मन में
मरने के बाद जीता रहूँ।
तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
बस सदा पीता रहूँ"
"उस भीतर छुपी
इन्सानियत को
आजाद कर दो।
अपने भीतर छुपी
स्नेह बूँद से
उसे भर दो"
बहुत खूब।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अति सुन्दर भाव! कोशिश करते रहिये ।
ReplyDeleteआपकी कवितायें आपके ब्लाग की ही तरह खुबसूरत हैं, इन्हें संभाल कर रखना किसी की नज़र ना लग जाए।
ReplyDeleteइन दोनो कविताओं ने तो मन ही मोह लिया। खास कर ये पंक्तियां तो मेरे दिल मे बस गयीं।
ReplyDelete" तुम मेरे मन में
मै तुम्हारे मन में
मरने के बाद जीता रहूँ।
तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
बस सदा पीता रहूँ। "
साधुवाद स्वीकारें।
बहुत सुन्दर सजीव सी कविताएँ । भावनाओं से ओतप्रोत हैं । अधूरी नहीं पूरी हैं ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
स्नेह का भाव जगाने वाली दो पूरी कवितायें पढने को मिली.हरा-भरा आपका ब्लाग भी पहली बार देखा.बहुत कुछ आपसे सीखना हॆ.फिर कभी...
ReplyDeleteबड़ी गहरी रचनायें है भाई!! बधाई!
ReplyDeleteअति उत्तम, परमजीत जी, बहुत सुंदर कविताएँ हैं, हृदय के पास ठहर सी गई हैं।
ReplyDeleteभाव सुंदर लगे , धन्यवाद !
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर ....
ReplyDeleteअगर ये कवितायें अपूर्ण हैं .. अधूरी हैं . तो चाहुन्गी की.. कवितायें अधूरी ही लिखी जायें तो ज्यादा बेह्तर हैं..
ReplyDeleteमुझे तो इतना ही चाहिए।
ReplyDeleteतुम मेरे मन में
मै तुम्हारे मन में
मरने के बाद जीता रहूँ।
तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
बस सदा पीता रहूँ।
bahut hi sundar lagi yah lines ...
बहुत अच्छी कविता है. सच के निकट .
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है. सच के निकट .
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