Friday, June 1, 2007

दो अधूरी कविताएं

१.

मुझे नहीं पहुँचना
कहीं दूर देश में या ग्रह पर
वहाँ वही समस्याएं होगीं
जो यहाँ हैं।
मुझे नही चढना
तरक्की के शिखरों को चूमनें
दुनिया में महाशक्ति
बननें की चाह में।
मुझे तो इतना ही चाहिए।
तुम मेरे मन में
मै तुम्हारे मन में
मरने के बाद जीता रहूँ।
तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
बस सदा पीता रहूँ।

२.

तुम सैनिक हो
तो आओं मै निमंत्रण देता हूँ-
तुम्हें मर-मिटने के लिए
लेकिन किसी देश के विरूध
लड़नें हेतु नही।
संपूर्ण विश्व ने
जिसे बंन्दी बनाया।
स्वार्थ पूर्ति हेतु
जिसे अक्सर जलाया।
उस भीतर छुपी
इन्सानियत को
आजाद कर दो।
अपने भीतर छुपी
स्नेह बूँद से
उसे भर दो।

20 comments:

  1. बडे गहरे भाव है परमजीत जी..कविता सुन्दर है..
    बधाई.

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  2. दोनों कविताएँ अच्छी लगीं । साधुवाद ।

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  3. कवितायें बढ़िया हैं बाली जी. पर विनम्रता की जगह कभी जोश पर भी लिखियेगा:

    जब मिले काल, जय महाकाल बोलो रे!

    सत श्री अकाल! सत श्री अकाल! बोलो रे! (दिनकर)

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  4. सुन्दर भाव है बाली जी दोनो कविताओं में और मुझे नही लगा के ये अधूरी कविताऐं हैं दोनो अपने आप में पूर्ण हैं.

    मन का संतोष ही सभी सुखो का स्त्रोत है
    दूसरा
    मन के अहम को मार दिया तो जग विजय किया

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  5. बहुत अच्छे भाव हैं
    कवि कुलवंत

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  6. बहूत खूब बाली जी हमेशा की तरह कम शब्दो मे सटीक अभिव्यक्ति, साधुवाद

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  7. परमजीत जी..
    बहुत गहरी गहरी बातें लिखी हैं आपने अपनी रचनाओं में, विशेषकर:

    "मै तुम्हारे मन में
    मरने के बाद जीता रहूँ।
    तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
    बस सदा पीता रहूँ"

    "उस भीतर छुपी
    इन्सानियत को
    आजाद कर दो।
    अपने भीतर छुपी
    स्नेह बूँद से
    उसे भर दो"

    बहुत खूब।

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  8. अति सुन्दर भाव! कोशिश करते रहिये ।

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  9. आपकी कवितायें आपके ब्लाग की ही तरह खुबसूरत हैं, इन्हें संभाल कर रखना किसी की नज़र ना लग जाए।

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  10. इन दोनो कविताओं ने तो मन ही मोह लिया। खास कर ये पंक्तियां तो मेरे दिल मे बस गयीं।
    " तुम मेरे मन में
    मै तुम्हारे मन में
    मरने के बाद जीता रहूँ।
    तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
    बस सदा पीता रहूँ। "

    साधुवाद स्वीकारें।

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  11. बहुत सुन्दर सजीव सी कविताएँ । भावनाओं से ओतप्रोत हैं । अधूरी नहीं पूरी हैं ।
    घुघूती बासूती

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  12. स्नेह का भाव जगाने वाली दो पूरी कवितायें पढने को मिली.हरा-भरा आपका ब्लाग भी पहली बार देखा.बहुत कुछ आपसे सीखना हॆ.फिर कभी...

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  13. बड़ी गहरी रचनायें है भाई!! बधाई!

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  14. अति उत्तम, परमजीत जी, बहुत सुंदर कविताएँ हैं, हृदय के पास ठहर सी गई हैं।

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  15. भाव सुंदर लगे , धन्यवाद !

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  16. अगर ये कवितायें अपूर्ण हैं .. अधूरी हैं . तो चाहुन्गी की.. कवितायें अधूरी ही लिखी जायें तो ज्यादा बेह्तर हैं..

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  17. मुझे तो इतना ही चाहिए।
    तुम मेरे मन में
    मै तुम्हारे मन में
    मरने के बाद जीता रहूँ।
    तुम्हारे भीतर बहनें वाला स्नेह
    बस सदा पीता रहूँ।


    bahut hi sundar lagi yah lines ...

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  18. बहुत अच्छी कविता है. सच के निकट .

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  19. बहुत अच्छी कविता है. सच के निकट .

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