आग को लगनें दो
आग से रोशनी फैलेगी
तभी नजर आएगा
कि हमारे आस-पास
क्या हो रहा है।
इस की परवाह
कौन करता है-
कि यह आग
किस के घर पर लगी है।
यह आग
जिस के कहनें पर
हम लगाते हैं।
उस की नजर
हमारे घर पर भी है।
इस आग में
जलते अरमा,इंसा और...
चीखते घरों का बोझ
हमारे सर पर भी है।
इस आग से बचना है तो
इस आग से मत खेलों।
जिस के कहनें पर
आग लगाते हो
उसे मत झेलों।
इस आग से बचना है तो
ReplyDeleteइस आग से मत खेलों।
जिस के कहनें पर
आग लगाते हो
उसे मत झेलों।
---बहुत ही सुन्दर संदेश देती रचना. आज ऐसी कविताओं की जरुरत है, परमजीत भाई. सार्थक प्रयास के लिये साधुवाद.
क्या बात है?
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
जो ये आग लगाते हैं उन्हें हम क्रांतिकारी कहते हैं, और जो इनमें जल जाते हैं उन्हें शहीद।
ReplyDeleteपर जो उकसाते हैं उनके लिए कोई पावन नाम नहीं हैं।