Tuesday, February 26, 2008

तुम बिन कौन...



रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,

तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।


तेरा लिए आसरा चलता अनजानें इन रस्तों पर,

कदम-कदम पर अपनों की हमनें तो बस घात सही।


क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,

या फिर रस्ते में टूटेगी साँसों की सौगात कहीं।


रात गई आया उजियाला फिर नयी प्रभात हुई,

तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी।


7 comments:

  1. क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,


    या फिर रस्ते में टूटेगी साँसों की सौगात कहीं।

    bahut bhavnakmat baat kahi,bahut sundar.

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  2. sundar bhaav....क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,


    या फिर रस्ते में टूटेगी साँसों की सौगात कहीं।

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  3. अच्छा लिखा है ....
    क्या हम मंजिल पर पहुँचेगें तेरे किए इशारों पर,
    या फिर रस्ते में टूटेगी साँसों की सौगात कहीं।

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  4. तुम बिन कौन सहारा मेरा,जिसने मेरी बात सुनी

    यह आमद है या फिर सोचकर लिखी गयी पंक्ति बहुत सुन्दर है!

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  5. परमजीत जी बहुत अच्छी कविता हे आप की, भाई बीच मे काफ़ी समय आप नजर नही आये बलोग पर.

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