इश्क की राह पे चलनें से, डरते क्यूँ हो।
बैठे इंतजार घर पे तुम, करते क्यूँ हो।
दूर से तुम को कोई, दे रहा, सदाएं है,
अनसुना हर घड़ी इसको करते क्यूँ हो।
माना इश्क में हर हाल में रोना होगा,
रोना किस्मत है तेरी तो, डरते क्यूँ हो।
हरिक आशिक को मंजिलें नहीं मिलती,
मौत आनें से पहले ,तुम मरते क्यूँ हो।
खोया-पाया, हिसाब इस का, क्या रखें,
खाली आया था,फिकर, करते क्यूँ हो।
गर इंतजार उसका, नहीं तुम से होता है,
परमजीत जानकर आहें! भरते क्यूँ हो।
इश्क की राह पे चलनें से, डरते क्यूँ हो।
बैठे इंतजार घर पे तुम, करते क्यूँ हो।
वाह वाह!! क्या बात है. बहुत बेहतरीन!!
ReplyDeleteso touching poetry with soft loving thoughts"
ReplyDeleteइश्क मे आंसू है, तनहाई है, वीराना है,
फ़िर भी लेके नाम उसका दम भरते क्यूँ हो ...
regards
हरिक आशिक को मंजिलें नहीं मिलती,
ReplyDeleteमौत आनें से पहले ,तुम मरते क्यूँ हो।
bahut khoob, sunder
कमाल की रचना परम जीत जी...बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा और मजा आ गया...
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब-
ReplyDeleteखोया-पाया, हिसाब इस का, क्या रखें,
खाली आया था,फिकर, करते क्यूँ हो।
perfectly expressed dear
ReplyDeleteregards
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regards
इश्क तो पुजा है ! मीरा इसी इश्क मे दिवानी हो गई थी... क्या बात है
ReplyDeleteधन्यवाद
आप भी कम गजब नहीं ढाते हैं. बेहतरीन!! पुनः आपको बधाई,
ReplyDeleteतीर स्नेह-विश्वास का चलायें,
ReplyDeleteनफरत-हिंसा को मार गिराएँ।
हर्ष-उमंग के फूटें पटाखे,
विजयादशमी कुछ इस तरह मनाएँ।
बुराई पर अच्छाई की विजय के पावन-पर्व पर हम सब मिल कर अपने भीतर के रावण को मार गिरायें और विजयादशमी को सार्थक बनाएं।
tabaah kar Dala zalim tune mere dil ko
ReplyDeletewarna yeh bhi kabhi tujh se aabaad tha
derii se aane ke liye mauaafi chahoomga... vijaydashami ke liye mangal kaamanaayein!
paramjeet ji bahut badiya likha hai aapne.kuch kehne ki shabd nahi.bahut bahut badahai
ReplyDeletekay bat hai ... love ..... ... बहुत ही अच्छा ... समय निकल कर मेरी नई रचनाए पर भी पधारे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है, पढकर मजा आ गया... रो रहे आशिकों को प्रेरणा दे रही है।
ReplyDeleteबुढ़ापे में इश्क हो जाए तो मुश्किल होगी,
ReplyDeleteइश्क की बात कर हमें डसते क्यों हो.
आभार.
sach hai khone paane ka kya hisaab karna,
ReplyDeleteaur kya darna....bahut achhi rachna
खोया-पाया, हिसाब इस का, क्या रखें,
ReplyDeleteखाली आया था,फिकर, करते क्यूँ हो।
सीधे सादे शब्दों मैं
बहूत बड़ी बात कह दी आपने
साधूवाद...........
bahut sundar .....
ReplyDeleteपढ़ने से चुक गया था, आज देखा, आपने इश्क के नाजुक घड़ी को खूबसूरत शब्दों में पिरोया है। सुंदर।
ReplyDeleteवाह क्या खूबसूरत कविता है यह। मजा आ गया पढ कर।हमने तो अभी हिन्दी में लिखना दो चार साल से शुरु किया है।
ReplyDeleteहम वैसे तो इंगलिश में लिखते है"सुलेखा ब्लॉग" पर।मैं उम्मीद करता हूं कि आप अब तशरीफ लाएंगे मेरे ब्लाग
"थाट मशीन" पर। यह मेरा हिन्दी रचनाओं का ब्लॉग है। दूसरा इंगलिश की रचनाओं क ब्लॉग है। नाम है "स्टेम॓।
कृप्या आप मेरी हिन्दी रचनाएं भी पढें और टिप्पणी किजीए। मेरा लिंक हैः-
http://rajee7949.blogspot.com/
धन्याबाद। "राजी कुशवाहा"
हरिक आशिक को मंजिलें नहीं मिलती,
ReplyDeleteमौत आनें से पहले ,तुम मरते क्यूँ हो।
thats the top notch thinking. I really like the message. Congrats.