हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Saturday, December 20, 2008
मैं प्रतिक्षा कर रहा हूँ
बड़े नाम वालों के
छोटे काम भी
बड़े नजर आते हैं।
इसी लिए हमेशा
छोटे मारे जाते हैं।
तुम भी मुस्कराते हो।
हम भी मुस्कराते हैं।
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जरूरी नही है
तुम्हारा गीत कोई सुनें।
लेकिन सभी गाते हैं।
खुशी,गमी या तन्हाईयां
सभी को सताते हैं।
तुम जरूर गाओं
क्यों कि
पंछी भी गाते हैं।
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यह एक मन की व्यथा है
जो हर बात को शुरू करके
अधूरा छोड़ देता है।
जैसे फूल को
पूरा खिलनें से पहले ही
माली तोड़ लेता है।
ताकी बाजार में उसकी
अच्छी कीमत मिल सके।
माला औ गुलदस्तों मे सजाता है।
हमारा जीवन भी इसी तरह जाता है।
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लेकिन कुछ फूल
ऐसे भी होते हैं।
जो माली की नजर से
बहुत दूर होते हैं।
ऐसे फूल अक्सर
तन्हाईयों में रोते हैं।
क्यूँकि मुर्झा कर मरना
बहुत दुखदाई होता है।
क्यूँकि तब वह सिर्फ
घास-फूँस होता है।
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बहुत भूलना चाहता हूँ
उस के फैले हुए हाथों को।
दुबारा किसी के सामनें
फैलनें ना दूँ।
उस की बोलती आँखों में
जो याचना नजर आती है।
उसे हमेशा के लिए
उस से छीन लूँ।
लेकिन मुझे अपनी बेबसी पर
बहुत गुस्सा आता है।
मैं ऊपर वाले को ताकता हूँ।
पता नही वह कहाँ छुप कर बैठा है।
किस बात पर ऐठा है।
फिर अपनें आप से पूछता हूँ-
"कहीं वह भी मेरी तरह"
"लाचार तो नहीं।"
मेरे पास कोई जवाब नहीं।
यदि आप को कहीं
जवाब मिले तो बताना।
मैं प्रतिक्षा कर रहा हूँ।
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बहुत भूलना चाहता हूँ
ReplyDeleteउस के फैले हुए हाथों को।
दुबारा किसी के सामनें
फैलनें ना दूँ।
" बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति पीडा की..."
Regards
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....बधाई।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण,सवेंदनशील अभिव्यक्ति... मर्म को छूती हुई रचनाएँ ...आभार...
ReplyDeleteक्या बात है बहुत सुन्दर और अच्छी है!
ReplyDeleteकाफी सुन्दर लगी उमीद कर्त्ता हूँ की आपसे ऐसे ऐसे और भी दील को छूने वाली रचना पढने को मिलेगे काफी भावनात्मक थी .आपको धन्यवाद ....
aapne itni bhavpoorn rachna likhi hai ki man dravit ho gaya ..
ReplyDeletedukh ki param abhiovyakhti hai ..
aapko bahut dhanyawad aur badhai
pls visit my blog for some new poems....
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
क्या खूब लिखा है आपने, बहुत गहरा, बहुत भावपूर्ण. आपको पढ़ना एक अनुभव होता है.
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध कर लिया आपने
ReplyDeletebahut marmik rachna......par vishwaas rakhye,ishwar aa rahe hain
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी,
ReplyDeleteपढ़कर आपकी संवेदना, मर्म और एहसास का पता चलता है, मगर दिन बहुरेंगे की आस तो होनी ही चाहिए.
आपकी संवेदना को प्रणाम
बहुत भूलना चाहता हूँ
ReplyDeleteउस के फैले हुए हाथों को।
दुबारा किसी के सामनें
फैलनें ना दूँ।
बहुत ही भावुक ओर सवेंदनशील अभिव्यक्ति दिल मे दुर तक उतर गई....
धन्यवाद
क्या गज़ब लिख गये महाराज!! वाह!!! बहुत उम्दा-आज आनन्द आ गया. मेरी बधाई.
ReplyDeletevery touching
ReplyDeleteउस की बोलती आँखों में
जो याचना नजर आती है।...
very true..
thanks
बहुत ही भावपूर्ण एवं मन की संवेदनाओं को व्यक्त करने वाली रचना.
ReplyDeleteआभार
सुंदर रचना
ReplyDeletekya gajab ka likha hai bhai...
ReplyDeletebahut sundar rachna hai!
"khushu ghami ya tanhaayiya sbhi ko staate haiN, tum zroor gaao kyoke panchhi bhi geet gaate haiN..."
ReplyDeletemun ki har naazuq avasthaa ko byaan karti hui khoobsurat nazm..
bahot khoob ! badhaaee !!
---MUFLIS---
Bali ji,
ReplyDeleteBahut sundar panktiyan likhi hai apne...badhai.
bahut bhawnatmk abhivykti............
ReplyDeletekavita dil ko chu gayi
badhai
meri prachi
ReplyDeletemain aapni mohhabat kho chuka hu. mujhe usse koi sikayat nahi hai, wo mujhe chod kar chali gayi. par jab bhi mud kar dekhegi meri banhe uske liye hamesa khuli rahegi. meri wajah se usne bahut taklif sahe hai. ab aur nahi, tum jaha bhi raho sada khush raho silpi main tumhara aakhri sans tak intejar karunga.
tumhara prashant (prt)
ambikapur (c.g.)