Sunday, April 26, 2009

छद्मनाम से लिखे या अपने असली नाम से....


अभी हाल ही मे ज्ञान दत्त जी की एक टिप्पणी जो कि
" शकुनाखर" (ब्लोग पर दी गई)(http://shakunaakhar.blogspot.com/2009/04/blog-post_14.html)
के कारण एक विवाद ने जन्म लिआ है।
ज्ञानदत्त जी ने कहा…

मुझे नहीं लगता कि छद्मनाम से लिखने वाले या अपने बारे में कम से कम उजागर करने वाले बहुत सफल ब्लॉगर होते हैं।
आपकी जिन्दगी में बहुत कुछ पब्लिक होता है, कुछ प्राइवेट होता है और अत्यल्प सीक्रेट होता है।
पब्लिक को यथा सम्भव पब्लिक करना ब्लॉगर की जिम्मेदारी है। पर अधिकांश पहेली/कविता/गजल/साहित्य ठेलने में इतने आत्मरत हैं कि इस पक्ष पर सोचते लिखते नहीं।
और उनकी ब्लॉगिंग बहुत अच्छी रेट नहीं की जा सकती।

ज्ञानदत्त जी की इस टिप्पणी पर मैने भी सहमती जताई है।उसी कारण को स्पष्ट करने के लिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ।जहां तक मैनें देखा कि छद्मनाम से हम वह सब कह जाते हैं जो हम अपने वास्तविक परिचय देते हुए नही कह पाते।अभी हाल ही में मैने एक ब्लोग पढ़ा था वह राजनिति से संबधित था। मैं उस पर अपनी प्रतिक्रिया देना चाहता था। अत: मै बेनामी नाम से टिप्पणी करना चाहता था,लेकिन वहां पर बेनामी नाम की सुविधा ब्लोगर द्वारा नही दी गई थी।सो मैं बिना टिप्पणी किए , वहां से हट गया। लेकिन अपने वास्तविक नाम से अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में मुझे संकोच का अनुभव हुआ।

अब सवाल यह उठता है कि मैं वहां असली नाम से टिप्पणी क्यों नही कर पाया ?

कारण साफ है,ऐसा करने पर मैं अपने लिखे के लिए जिम्मेदार हो जाँऊगा,जवाब देह हो जाऊँगा।अत: ऐसी टिप्पणी या विचार व्यक्त करने से निश्चय ही डरूँगा।लेकिन बेनामी टिप्पणी करने पर मै इस जवाब देही से साफ बच सकता हूँ।इसी लिए मैने ज्ञान दत्त जी की बात पर सहमती भी जताई।

अभी एक और पोस्ट पढने को मिली जिसमें उन्होनें कुछ ऐसे नाम दिए है जो वास्तव में इन रचनाकारों के परिवर्तित नाम हैं।लेकिन हम उन्हें छद्मनाम नही कह सकते।कारण है कि ये नाम परिवर्तन का मामला है।उन रचनाकारो ने अपने परिचय को इस से अलग नही किया।असल मे छद्मनाम वह है जिस मे अपनी पहचान को पूर्णत: छुपाया जाता है।यदि आप इस छद्मनाम के साथ अपना सही परिचय व तस्वीर भी दे रहे है तो वह छद्मनाम नाम ना हो कर आपका उपनाम बन जाता है।

अब आते है असली मुद्दे पर कि असली नाम से लिखे या छ्द्मनाम से ?
जहां तक मेरी सोच है कि यह ब्लोगर पर निर्भर करता है कि वह कैसे लिखे। इस के लिए किसी को बाध्य नही किया जा सकता।यदि आप जवाब देही से बचना चाहते हो तो छद्मनाम से ही लिखना चहिए।लेकिन यदि आप जवाब देही से बचना नही चाहते तो अपने असली नाम से लिखें।

अब एक दूसरा सवाल कि हमे अपने बारे में कितनी जानकारी देनी चाहिए?

यहां पर मै स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं अपने वास्तविक नाम से व उप नाम दोनों से लिखता हूँ।लेकिन परिचय मैनें भी पूर्ण नही दिया है।यानी कि घर का अता पता या टेलिफोन नम्बर आदि।शायद इसी लिए मै सोचता हूँ की संक्षित परिचय दे देने मे कोई हर्ज नही है।लेकिन ऐसी जानकारीयां हमे कभी भी नही देनी चाहिए जो हमें किसी परेशानी मे डालने मे सहायक हो सकती हैं।दूसरा यदि कोई ब्लोगर अपनी वास्तविकता छुपाना जरूरी समझता है तो उसे ऐसा करने का पूरा हक है।अंत मे आप से निवेदन है कि यह मेरे निजि विचार हैं यह जरूरी नही कि आप भी इस से सहमत हों।लेकिन चाहूँगा की आप भी अपने विचार बताएं।

28 comments:

  1. I blog in Hindi primarily because i have seen most of English bloggers using proxy names. Using real names is USP of Hindi blogging and must be encouraged and PRESERVED. Personally, i am totally against pseudonyms and i give two hoots to such people . By the way what is your pseudonym? Is this ur childhood foto in ur profile?

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  2. छद्म नाम और असली नाम की चर्चा में एक बात महत्व की है और वह यह कि आप किस नाम से प्रसिद्ध होना चाहते हैं। जब आप लिखते हैं तो आपको इसी नाम से प्रसिद्धि भी मिलती है। कुछ लोग अपने असली नाम की बजाय अपने नाम से दूसरा उपनाम लगाकर प्रसिद्ध होना चाहते हैं उसे छद्म नाम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह छिपाने का प्रयास नहीं है।
    दूसरी बात यह है कि अंतर्जाल पर लोग केवल इस डर की वजह से अपना परिचय नहीं लिख रहे क्योंकि अभी ब्लाग लेखक को कोई सुरक्षा नहीं है। इसके अलावा लोग ब्लाग तो केवल फुरसत में मनोरंजन के साथ आत्म अभिव्यक्ति के लिये लिखते हैं। अपने घर का पता या फोन न देने के पीछे कारण यह है कि हर ब्लाग लेखक अपना समय संबंध बढ़ाने में खराब नहीं करना चाहता। सभी लोग मध्यम वर्गीय परिवारों से है और उनकी आय की सीमा है। जब प्रसिद्ध होते हैं तो उसका बोझ उठाने लायक भी आपके पास पैसा होना चाहिये।
    अधिकतर ब्लाग लेखक अपने नियमित व्यवसाय से निवृत होने के बाद ही ब्लाग लिखते और पढ़ते हैं। यह वह समय होता है जो उनका अपना होता है। अगर वह प्रसिद्ध हो जायें या उनके संपर्क बढ़ने लगें ं तो उसे बनाये रखने के लिये इसी समय में से ही प्रयास करना होगा और यह तय है कि इनमें कई लोग इंटरनेट कनेक्शन का खर्चा ही इसलिये भर रहे हैं क्योंकि वह यहां लिख रहे हैं। सीमित धन और समय के कारण नये संपर्क निर्वाह करने की क्षमता सभी में नहीं हो सकती। यहां अपना असली नाम न लिखने की वजह डर कम इस बात की चिंता अधिक है कि क्या हम दूसरों के साथ संपर्क रख कर कहीं अपने लिखने का समय ही तो नष्ट नहीं करेंगे।
    ब्लाग पढ़ने वाले अनेक पाठक अपना फोटो, फोन नंबर और घर का पता मांगते हैं। उनकी सदाशयता पर कोई संदेह नहीं है पर अपनी संबंध निर्वाह की क्षमता पर संदेह होता है तब ऐसे संदेशों को अनदेखा करना ही ठीक लगता है। सीमित धन और समय में से सभी ब्लाग लेखकों के लिये यह संभव नहीं है कि वह प्रसिद्धि का बोझ ढो सकें। इसलिये पाठकों पढ़ते देखकर संतोष करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
    ............................
    दीपक भारतदीप

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  3. दीपक भारतदीप ने काफी सुलझे हुए विचार रखे हैं। उनसे काफी हद तक सहमत हूँ।

    वैसे छद्म नाम कभी कभी मौज लेने के लिये भी रखे जाते हैं। फणीश्वरनाथ रेणू का किस्सा बडा रोचक है इस मामले में। अपने एक लेखकीय मित्र को वह छद्म नाम से एक महिला रूप में प्रशंसा पंत्र लिखते थे। जब भी उस महिला का प्रशंसा पंत्र आता, वह लेखक मित्र फणीश्वरनाथ रेणू जी के पास आकर बताता और खूब मगन रहता कि कोई उसकी महिला प्रशंसक है। उस जमाने में महिला प्रशंसक होना बहुत बडी बात मानी जाती थी।
    सो काफी दिनों तक रेणू पत्र लिखते रहे और अपने मित्र के खुशफहमी का मजा लेते रहे। एक दिन आखिर में सभी दोस्तों के बीच रेणू ने यह बात खोल दी और खूब मजे लिये। सभी दोस्त हंस हंस कर लोहालोट हो रहे थे और वह लेखक मित्र सोच रहे थे क्या करें - हंसे या अपना सिर धुनें :)

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  4. लीक पर: नाम जो देना चाहता है वह दे दे, जो नहीं देना चाहता है वह न दे।

    लीक से हट कर: सतीश पंचम जी की टिप्पणी ने चेहरे पर एक मुस्कुराहट फैलायी, धन्यवाद! :)

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  5. नाम बदलने का अर्थ मेरी समझ से परे है......

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  6. आपके विचारों से सहमति है। यदि छद्म नाम केवल अपनी टिप्पणी या अपने लेखन की जवाबदेही से बचने के लिए उपयोग किया जाए तो वह एक अलग मसला है।
    घुघूती बासूती

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  7. हम तो अब चाह कर भी अपना नाम हटा नहीं सकते अपने इस ब्लॉग से।
    एक दो को असलियत का पता चला तो बेचारों को इतना धक्का लगा, ब्लॉग लिखना ही बंद कर दिया :-)

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  8. मामला जवाबदारी से बचने से ज्यादा जुड़ा है। नाम का छिपाव वैचारिक उच्छृंखलता को जन्म नहीं देता तो कोई आपत्ति नहीं। मुंशी प्रेमचन्द को हम उसी नाम से जानते हैं। उससे कोई परेशानी नहीं।
    मेरी टिप्पणी को इस स्पष्टीकरण के साथ लिया जाये।

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  9. सही कहा, जवाब देही से बचने के लिये ही लोग नाम बदलने की सोचते हैं
    और वैसे, भी देखा जाये तो गुलज़ार साहब का भी असली नाम तो कुछ और ही है।
    खैर, मुझे मेरा नाम बहुत पसंद है, और मैं इसे बदलन नहीं चाह्ता

    कई बार, दोस्तो ने कहा, तुम अपना कोई तखल्लुस क्यों नहीं रखते, परन्तु मुझे मेरा असली नाम ही पसन्द है

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  10. परमजीत जी,बात जवाबदेही से भी ज्यादा आत्मिवश्वास से संबंधित लगती है। जब आप कोई बात कहना चाहते हैं औऱ उससे पूरी तरह कन्वीन्स्ड हैं तो आपको अपने नाम से टिप्पणी देने में हर्ज कतई नहीं होगा। लेकिन जब आप खुद अपनी बात से सहमत नहीं या कहीं ना कहीं कोई कान्फिल्क्ट साथ रख कर चलते हैं तो कभी नाम के साथ टिप्पणी करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे बेशक अति आत्मविश्वास जुटा सकते हैं।
    इस तरह की टिप्पिणियां व्यक्तित्व को जाहिर करती हैं, इस तरह के मामलों में अपनी बात कहने से पहले व्यक्ति को अपनी टीका पर पुनर्विचार जरूर करना चाहिए। हो सकता है सेकंड थॉट आत्मविश्वास दिलाने में कामयाब हो सके। और अगर भावुक औऱ आवेग में की गई टिप्पणियों से किसी को अपनी पहचान छिपाने जैसा निर्णय लेना पड़े तो किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं कहा जा सकता।

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  11. अगर आपने कोई सच बात कही और किसी बरखा दत्त ने आप को जेल भेजने की धमकी दे दी तो ? वैसे मैंने तो अपनी पूरी जानकारी दे रखी है. लेकिन जो अनाम बन कर लिखते हैं... उसमें भी कोई बुराई नहीं.

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  12. हेम जी के ब्लॉग पर मै विस्तार से अपनी बात रख चूका हूँ... हम तो वही कहेगे ये ब्लोगर की निजता ओर उसकी सहूलियत पे है.....महत्वपूर्ण ये भी की आपकी ब्लोगिंग का उद्देश्य क्या है ?आपके कंटेंट क्या है ?तो क्या अपने नाम से पहेली /कविता /गजल लिखने वाले ब्लोगर क्या दोषमुक्त है ?वैसे गजल कविता हम भी ठेलते है......मुझे याद है "रक्ष्नंदा प्रकरण " में उस बेचारी लड़की को इतनी परेशानी हुई की आखिर में उसे ब्लॉगजगत से असमय विदा लेना पड़ा ....जाहिर है ब्लॉगजगत में भी कई तरह के लोग है .....वैसे तरुश्री जी से पूर्णतया सहमत हूँ.....

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  13. भई हम तो अपने नाम से ही लिखते है,बाकी जाकि रहे भावना जैसी।

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  14. मुझे लगता है अपने नाम से ही लिखना उचित है............जो आप कहना चाहते हैं उसकी इमानदारी से जिम्मेवारी भी लेनी चाहिए .................उस पर तर्क वितर्क,वाद - विवाद के लिए तैयार रहना चाहिए

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  15. मैं इस विषय में हेम जी के ब्लॉग पर अपनी बात विस्तार में लिख चूका हूँ.
    वाद-विवाद का जिस तरह कोई अंत नहीं होता, तर्क -कुतर्क का भी कोई अंत नहीं होता, वैसे ही इस विवाद का भी कोई अंत नहीं, जितने मुँह उतनी बातें.

    बेहतर है कि इस विवाद का अंत किया जाये, और जिसकी जो इच्छा , उसे वह करने दिया जाये. महत्त्व रचना को दिया जाये तो बेहतर रहेगा, वर्ना हम ब्लागर भी जातिवाद की तरह क्षद्म नाम और वास्तविक नाम के वाद में फस कर रह जायेंगे और राज्नीति प्रारंभ हो जायेगी,
    वैसे भी भाई ज्ञान जी ने अपने पक्ष की सफाई दे दी है कि उनकी टिप्पणी को किस स्पष्टीकरण के साथ लिया जाये. .
    अतः विवाद का अंत ही समझा जाये तो उत्तम रहेगा.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  16. मर्यादाओ मे रहकर टिप्पणिया की जाय तो क्या छद्म नाम और क्या असली नाम ब्लॉग पढ़ने का
    मकसद तो अक दूसरे के विचारो से पृिचित होना और ल द्वारा लिखी गई बात को समझकर अपने विचार देना है
    इसमे कोई विवाद की बात ही न्ही है|

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  17. mai dipak ji kee baat se sahamat hoo. log vina vajah kisi blogar ko bahut bada aadami maan lete hai . sab apane apne haisiyat me rahate hai . jyada bade logo ke sath sambandh banaane se kaee baar bajat se baahr bhi kharchaa karana pad jata hai .

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  18. मेरा तो मत है कि हमें अपनी पहचान छुपाने की कोई जरूरत नहीं।

    ----------
    S.B.A.
    TSALIIM.

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  19. मेरी जिस लघुकथा पर ज्ञान दत्त जी की वह टिप्पणि आई थी उसमें मैं केवल इतना बताना चाहता था कि दो ब्लोगर आभासी मित्र होने पर भी यदि कभी वास्तविक जीवन में मिल जाएँ तो संभव है कि वे एक दूसरे को न पहचानें.
    उसके बाद उस टिप्पणि को आधार बना कर दी गयी पोस्ट में छद्म नाम का मुद्दा उठ गया और इस सम्बन्ध में पर्याप्त चर्चा हो गयी. उस पोस्ट और आपकी पोस्ट पर दी गयी टिप्पणियों से यही स्पष्ट होता है कि महत्व लेखन का है नाम का नहीं. आप सहित अनेक ब्लोगर ने अपनी वर्तमान फोटो न दे कर छद्म फोटो दे रखी है, लेकिन इससे यह नहीं माना जाना चाहिए कि वे कोई गलत काम कर रहे हैं.
    बहरहाल अपना परिचय किस सीमा तक दिया जाय इसे महत्व न दे कर हमें अपने लेखन पर जोर देना चाहिए.

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  20. प्रिय परमजीत बाली जी,
    सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग "हमसफ़र यादों का......." पर पधारने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, चलिए इसी बहाने आपसे एवं आपके चारों ब्लोग्स से परिचय हो गया। मेरा मानना है कि ब्लॉग लेखकों को अपना परिचय देना चाहिए या नहीं यह उनकी अपनी इच्छा है। इस "पहचान और परिचय" के चक्कर में न पड़कर उन्हें अपने लेखन की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए।

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  21. मैं मुखौटाधारी संस्कृति के सख्त खिलाफ हूँ. अगर असहज महसूस करें तो भरसक ना लिखें पर वही विचार दें जिस पर आप को पूरी आस्था और विस्वास हो ऍसा मेरा निजी मत है।

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  22. dekhiye baat ye hoti hai ki aap chahte kya hain. hamaare saahityakaron ne bhi kabhi doosare naamon se likha tha, unke saamne bhi kabhi apni pahchan chhupane ka sankat rahaa hoga.
    aaj aap jis tarah ki samasya se gujare, tippani men apni pahchan na jahir karne ke sambandh men, is kaaran se bhi kai logon ko doosare naam se likhte dekha gayaa hai.
    haan kabhi-kabhi ye ek STING OPERATION ki tarah bhi kaam aata hai.
    waise is par achchhi bahas ho sakti hai.

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  23. आदरणीय बाली जी,
    बहुत अच्छी तरह से आपने वास्तविक नाम या छद्म नाम से
    लेखन करने की बात rakhee है.लेकिन वास्तविक नाम से लिखने में ऐसी कोई दिक्कत आज नहीं है .
    हमारे देश में तो वैसे भी मीडिया ,लेखन को बहुत स्वतंत्रता दी गयी है .

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