Thursday, September 2, 2010

जाग रे अब जाग रे...


जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।


हर तरफ अंगार हैं,हर तरफ हैं खाईयाँ।
पथ तेरा काँटों -भरा है,मीलों हैं तन्हाईयां।
कोई चलने संग तेरे अब नही यहाँ आयेगा।
तू अकेला आया था, तू अकेला जाएगा।
किससे करें, शिकवे- शिकायत जब बँधा यही भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।


आना-जाना दुनिया मे, कब हमारे वश रहा ?
कौन ले जाता हमें भावों के सागर में बहा ?
ढूँढते रहते है अपना, दूसरों मे ये जहाँ।
आज तक कोई ना जाना, जाना है हमको कहाँ ?
जी रहे हैं जानते नही क्या बँधा है भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।

34 comments:

  1. स्वप्न यूँ ही देखते रहना न जीवन क्रम बने,
    देखकर साकार करने का समय भी चाहिये।

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  2. स्वप्न यूँ ही देखते रहना न जीवन क्रम बने,
    देखकर साकार करने का समय भी चाहिये।

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  3. बहुत बेहतरीन!

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये

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  4. बहुत ही सुंदर कविता.... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.....

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  5. अच्छी कविता।
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ।

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  6. बहुत ही अच्छा सन्देश देती एक सार्थक कविता.

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  7. अच्छा सन्देश देती एक सार्थक कविता.
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.

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  8. अत्मिक जागरण का सार्थक संदेश देती रचना।

    आभार

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  9. सुन्दर प्रस्तुति. श्री कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी की हार्दिक शुभकामनांए

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  10. हर तरफ अंगार हैं,हर तरफ हैं खाईयाँ।
    पथ तेरा काँटों -भरा है,मीलों हैं तन्हाईयां।
    कोई चलने संग तेरे अब नही यहाँ आयेगा।

    prtyek pankti ati sundar

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    जन्माष्टमी पर्व के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये...
    आज आपकी एक लाइना चिट्ठी चर्चा समयचक्र पर
    जय श्रीकृष्ण

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  12. श्री कृष्ण जन्माष्ठमी की बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!

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  13. जीवन सत्य को सहज ही कविता में चित्रण किया है आपने. बहुत सुन्दर!!

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  14. जाग रे अब जाग रे....
    बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।
    बहुत ही अच्छा सन्देश सुन्दर कविता

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  15. अच्छा सन्देश देती बेहतरीन कविता। सुन्दर प्रस्तुति......

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  16. एक नया जोश एक नया वक़्त एक नया सवेरा लाना है
    कुछ नए लोग जो साथ रहे कुछ यार पुराने छूट गए
    अब नया दौर है नए मोड़ है नई खलिश है मंजिल की
    जाने इस जीवन दरिया के अब कितने साहिल फिसल गए

    अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति
    www.the-royal-salute.blogspot.com

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  17. बहुत ही सार्थक कविता.

    आभार

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  18. बधाई! दर्पण में देख कर सभी ने यही देखा मेरे बाल, मेरी आँखें, मेरा चेहरा, मैं एसा, मैं अच्छा, मैं बुरा, देख कर मैं को ही देखा कभी यह नहीं पूछा कि भाई तुम कौन हो ? किस प्रयोजन से पृथ्वी पर आना हुआ ? तुम क्या करते हो?

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  19. बहुत देर बाद आयी लेकिन देर आये दुरुस्त आये। कम से कम ये लाजवाब रचना तो पढी। बहुत बहुत बधाई। इतनी देर से क्यों पोस्ट डालते है? जल्दी लिखा करें। शुभकामनायें

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  20. बस जागना ही तो है, समस्‍या तो यह है कि जागते को जगाना है और ऐसे जागते हुए को जगाना है जो भ्रमग्रस्‍त है।

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  21. अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति

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  22. बेहतरीन। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  23. सच लिखा है ... इंसान को हक़ीकत की दुनिया में रहना चाहिए ...

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  24. बहुत ही दार्शनिक भाव लिये है यह आपकी कविता ।

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