हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Thursday, September 2, 2010
जाग रे अब जाग रे...
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।
हर तरफ अंगार हैं,हर तरफ हैं खाईयाँ।
पथ तेरा काँटों -भरा है,मीलों हैं तन्हाईयां।
कोई चलने संग तेरे अब नही यहाँ आयेगा।
तू अकेला आया था, तू अकेला जाएगा।
किससे करें, शिकवे- शिकायत जब बँधा यही भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।
आना-जाना दुनिया मे, कब हमारे वश रहा ?
कौन ले जाता हमें भावों के सागर में बहा ?
ढूँढते रहते है अपना, दूसरों मे ये जहाँ।
आज तक कोई ना जाना, जाना है हमको कहाँ ?
जी रहे हैं जानते नही क्या बँधा है भाग में।
जाग रे अब जाग रे....
बहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।
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स्वप्न यूँ ही देखते रहना न जीवन क्रम बने,
ReplyDeleteदेखकर साकार करने का समय भी चाहिये।
स्वप्न यूँ ही देखते रहना न जीवन क्रम बने,
ReplyDeleteदेखकर साकार करने का समय भी चाहिये।
सुन्दर कविता !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteहिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।
बहुत ही सुंदर कविता.... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.....
ReplyDeleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ।
बहुत ही अच्छा सन्देश देती एक सार्थक कविता.
ReplyDeleteअच्छा सन्देश देती एक सार्थक कविता.
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.
अत्मिक जागरण का सार्थक संदेश देती रचना।
ReplyDeleteआभार
सुन्दर प्रस्तुति. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनांए
ReplyDeleteहर तरफ अंगार हैं,हर तरफ हैं खाईयाँ।
ReplyDeleteपथ तेरा काँटों -भरा है,मीलों हैं तन्हाईयां।
कोई चलने संग तेरे अब नही यहाँ आयेगा।
prtyek pankti ati sundar
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteजन्माष्टमी पर्व के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये...
आज आपकी एक लाइना चिट्ठी चर्चा समयचक्र पर
जय श्रीकृष्ण
श्री कृष्ण जन्माष्ठमी की बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteजीवन सत्य को सहज ही कविता में चित्रण किया है आपने. बहुत सुन्दर!!
ReplyDeletebehtareen.........badhiya!!
ReplyDeleteशायद इसे पढ कर जाग ही जाऊ
ReplyDeleteBahut sundar aur sandeshaparak kavita---.hardika shubhakamnayen.
ReplyDeleteजाग रे अब जाग रे....
ReplyDeleteबहुत सो चुका सपनो की दुनिया मे।
बहुत ही अच्छा सन्देश सुन्दर कविता
अच्छा सन्देश देती बेहतरीन कविता। सुन्दर प्रस्तुति......
ReplyDeleteएक नया जोश एक नया वक़्त एक नया सवेरा लाना है
ReplyDeleteकुछ नए लोग जो साथ रहे कुछ यार पुराने छूट गए
अब नया दौर है नए मोड़ है नई खलिश है मंजिल की
जाने इस जीवन दरिया के अब कितने साहिल फिसल गए
अत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति
www.the-royal-salute.blogspot.com
बहुत ही सार्थक कविता.
ReplyDeleteआभार
bhut kub sirji
ReplyDeletebahut badhiya sandesh
ReplyDeleteबधाई! दर्पण में देख कर सभी ने यही देखा मेरे बाल, मेरी आँखें, मेरा चेहरा, मैं एसा, मैं अच्छा, मैं बुरा, देख कर मैं को ही देखा कभी यह नहीं पूछा कि भाई तुम कौन हो ? किस प्रयोजन से पृथ्वी पर आना हुआ ? तुम क्या करते हो?
ReplyDeleteबहुत देर बाद आयी लेकिन देर आये दुरुस्त आये। कम से कम ये लाजवाब रचना तो पढी। बहुत बहुत बधाई। इतनी देर से क्यों पोस्ट डालते है? जल्दी लिखा करें। शुभकामनायें
ReplyDeleteसन्देश देने में सक्षम!
ReplyDeleteआशीष
बस जागना ही तो है, समस्या तो यह है कि जागते को जगाना है और ऐसे जागते हुए को जगाना है जो भ्रमग्रस्त है।
ReplyDeleteअत्यंत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteबढ़िया !
ReplyDeleteबेहतरीन। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
सच लिखा है ... इंसान को हक़ीकत की दुनिया में रहना चाहिए ...
ReplyDeleteबहुत ही दार्शनिक भाव लिये है यह आपकी कविता ।
ReplyDeletevaah bhaayi.....aapne to sachmuch jagaa hi diyaa....
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