गई रात देखो
सिमटा अंधेरा
उजाला हुआ है
फिर जिन्दगी में।
चलो! पक्षीयों से
गगन में उड़े हम,
देखे कहाँ पर
खुशीयां पडी हैं।
है कौन-सी वो
धरा यहाँ पर
गर्भ मे जिसके
खुशीयां गड़ी हैं।
चुनने को आजाद
है अपना मन भी।
जो चाहो चुनों तुम
खुशी है तुम्हारी।
दुखों की कमी कोई
नजर नही आती।
खुशीयां सभी को
बहुत हैं सुहाती।
मिला कब है चाहा
किसी को यहाँ पर।
फिर भी उम्मीद
हरिक मन सजी हैं।
पर को परास्त
करनें की चाहत।
भीतर तेरे औ’ मेरे
भी जगी है।
छोड़ो मन इस
आपाधापी का संग्राम,
किसी को भला क्या
इसने दिया है।
स्वागत करों तुम
किरण ने छुआ है।
जगी हैं उमंगें
इस रीते मन मॆं।
गई रात देखो
सिमटा अंधेरा
उजाला हुआ है
फिर जिन्दगी में।
बहुत सुंदर....................
ReplyDeleteउम्मीदों और आशाओं से भरपूर रचना.
बधाई.
अनु
बिल्कुल सच कहा है आपने प्रत्येक पंक्ति में ..आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteजीवन के उजाले का स्वागत करना चाहिए ... जो बीत गया सो बीत गया ...
ReplyDeleteआपाधापी अस्त हुयी, अब नया सबेरा आने दो
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबढ़िया !!
ReplyDeleteउजाले बनाये रखने का प्रयास सार्थक विचार है...
ReplyDeleteआशा की किरने जगाती हुई रचना ...क्या रखा है आपाधापी में जहां खुशियाँ मिले समेत लो बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
वाह बेहद खूबसूरत एहसास
ReplyDeletepositive thinking.
ReplyDeletesundar...ati sundar..
ReplyDeleteprerna dayak...!
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना....
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletehar baar kii tarah behatariin rachana
ReplyDeleteभावपूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति,शुभकामनाएं
ReplyDeleteकृपया अवलोकन करे ,मेरी नई पोस्ट ''अरे तू भी बोल्ड हो गई,और मै भी''
gahan bhavon ki abhivyakti .aabhar
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bahut sundar rachna...shubhkamnayen
ReplyDeleteसुन्दर और आशापूर्ण भाव, बधाई.
ReplyDeleteभावपूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति,मेरी शुभकामनायें
ReplyDeleteaasha ki kirno ko smete hue
ReplyDeletebhaavpoorn shabdaavali !
sundar rachnaa !!