हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Tuesday, February 3, 2009
खाली मन
अब नही दोड़ता मन
लेकिन थका नही ।
पक कर टूट
जमीन पर आ गिरा है।
जैसे कोई तिन्का
अथाह सागर मे तिरा है।
*******************
जब मन ठहर जाता है
तो शब्द टूट-टूट कर
अर्थहीन बिखरने लगते हैं।
तब कोई भाव नही
खुशी के दीप जगते हैं।
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जानता हु ,ठहरा हुआ मन
फिर एक दिन धक्का खाऐगा।
फिर अपनी राह पर
पहले जैसा चलायमान हो जाऐगा।
********************
(चित्र गुगुल से सभार)
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रचना सुंदर है. धक्के या झटके के बगैर अपने आप कुछ हो ही नहीं पाता?
ReplyDeleteबाली साहब मुक्तक लेखन में आपके लेखनी का क्या कहना ,हलाकि तीनो मुक्तक एक से बढाकर एक है मगर साहब मुझे दूसरा मुक्तक बहोत ही पसंद है बहोत ही बढ़िया भाव है ढेरो बधाई आपको
ReplyDeleteअर्श
bahut sundar khali mann ke bhav liye rachanaye badhai
ReplyDeleteमन की मन ने सही जानी है, अच्छी रची !
ReplyDeleteवाकई जब मन टूट जाता है, तो शब्द टूटकर ,
ReplyDeleteअर्थहीन से बिखरने लगते हैं..........
मन की दशा की सही अभिव्यक्ति....
man ke bhav anant hain aur jab tak khali hai tabhi tak ye hal hai uske baad sahi disha mein hi chalayman hoga kyunki man hai ye.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti.
बेहद सुंदर!!!!
ReplyDeleteक्या बात है भाई ...सुभान अल्लाह...वाह...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar rachna he.
ReplyDeleteजानता हु ,ठहरा हुआ मन
फिर एक दिन धक्का खाऐगा।
फिर अपनी राह पर
पहले जैसा चलायमान हो जाऐगा।
shabdo ki kataar aour uski manzil dono satik....
bahut khoob..dhanyvad
Well,FOR THE FIRST TIME TODAY VISITED YOUR THIS BLOG.DEAR YOU ARE GENUINELY SENSITIVE,EMOTIONAL, HONEST AND INTELLIGENT WHILE EXPRESSING YOUR SELF.GREAT/GOD BLESS YOU.
ReplyDelete(MAVARK)
'फिर अपनी राह पर,
ReplyDeleteपहले जैसा चलायमान हो जाएगा'
इस आशावाद को नमन।
कितना खूबसूरत लिखा है आपने ...
ReplyDeleteजब मन ठहर जाता है ..तब शब्द टूट टूट कर ...
बाली साहब, आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं ये शब्द
ReplyDeletewaah waah
ReplyDeletebahut khoobsoorat
बहुत खूबसूरत लिखा है।
ReplyDeleteकाश ऐसा होता कि हमारे सारे शब्द अकड़ की जगह तरल अहसास मे बदल जाते।
धक्का लगाने वाले भी हमारी चाहतों की बाहों तले उड़ान मे खो जाते।
धक्का तो सभी सोचते हैं, काश कोई उड़ान भी सोच पाता
धक्का और उड़ान, इन दोनों के बीच मे हम सभी टहल रहे हैं। बहुत अच्छा है। शब्द धक्का है तो चित्र उड़ान का है।
कोई धक्का देता है तो कोई उड़ान भरता है।
सुंदर अभिव्यक्ति..
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