कितने धर्म हैं मेरे देश में
लेकिन एक अकेले अधर्म को
नही हरा पा रहे हैं।
क्यूँ कि यहाँ सभी
अपनी-अपनी ढपली बजा रहे हैं।
अपनी-अपनी खिचड़ी अलग पका रहे हैं।
आज आतंकवाद रूपी अधर्म से
कोई नही लड़ रहा।
जहाँ भी देखो-
हिन्दु का खून बहा,
मुस्लिम का खून बहा,
सिक्ख और ईसाई का खून बहा।
तुम से किस पागल ने कह दिया-
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
आतंकवादी का धर्म है।
आतंकवाद का नाम ही तो
असल मे अधर्म है।
जब तक तुम सभी धर्म वाले
आपस मे लड़ने की बजाए
अधर्म रूपी आतंकवाद से
एक हो कर नही लड़ोगे।
तब तक तुम सभी यूँही
एक एक कर के मरोगे।
आओ! सभी धर्म वालों
सब को निमंत्रण देता हूँ।
चलो! हम सब एक हो जाएं।
इस आतंकवाद रूपी अधर्मी राक्षस की
जड़े काटे,
इस राक्षस को मार गिराएं।
यदि तुम्हारे धर्म में,
कोई अधर्मी धर्मी बन कर बैठा है,
उसे बाहर का रास्ता दिखाएं।
निष्पक्ष हो यह कदम उठाएं।
अब तो समझों
हम आतंकवाद से क्यूँ हार रहे हैं?
क्यूँकि हम आतंकवाद को नही,
हिन्दु,मुस्लिम,सिख,ईसाई को मार रहे हैं।
इसी लिए बार-बार
आतंकवाद से हार रहे हैं।
इसी लिए बार-बार
आतंकवाद से हार रहे हैं।
आतकवाद समस्त मानव जाति के लिए खतरा है। उसका उन्मूलन सम्मिलित प्रयास से ही संभव हो पाएगा।
ReplyDeleteसही कहा आपने।सहमत हूं आपसे।
ReplyDeleteबाली जी..... बेहतरीन लिखा है....... हम सब अपने अपने धर्म में ही समाये रहते हैं........... मानव धर्म को भूल गयी हैं........ आतंकी इस बात को बाखूबी समझते हैं.......... अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं
ReplyDeleteबहुत ही सही कह रहे है आप . आतंकवाद से निपटने में व्यवस्थित कार्य योजना बनाए जाने की जरुरत है और उस पर अमल किया जाना चाहिए .
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने.....जब तक समाज में साम्प्रदायिकता हावी रहेगी, तब तक आंतकवाद भी समाप्त नहीं हो सकता।
ReplyDeletebahut achhi baat kahi hai aapne...is baat ko aaj zamaane ko samajhna hoga...apni awaaz ko buland karte rahe...shubhkaamnaayein :)
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
बहुत सुन्दर और सामयिक लिखा मित्र!
ReplyDeleteबात वहीं की वहीं है कि हम इंसानियत भूल रहे हैं, आपकी कृति सार्थक है
ReplyDeletebehtareen likha hai.........bas itni si baat agar samajh lein to duniya ki koi takat hamein hara nhi sakti.
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक रचना ,बधाई .
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने आज असी ही ओजस्वी वाणी की
ReplyDeleteजरुरत है |
जब हम अक व्यक्ति से प्यार करते है तो वो प्रेम कहलाता है कितु हम जब समूह से प्रेम करते है तो वो धर्म कहलाता है
Lad rahee hun mai, koyee saath nahee de rahaa..!
ReplyDeleteAap mere blog pe dekhen, http//lalitlekh.blogspot.com
Indian Evidence Act, dafaa, 25/27 ko leke...tatha, is 150 saal purane qaanoon me badlaav laneke khaatir maine kitnee guhaar lagayee hai...documentary banana chaah rahee hun.
Bharat ke avkaash prapt ,BSF ke DGP kabse ek PIL lad rahe hain..1981 me Dharamveer commision ke sujhaav turant laagu karneke liye uchhatam nyayalayne aadesh diya tha..
aaj tak us aadesh kee avhelnaa ho rahee hai...police ke aalaa afsar maare jaa rahe hain..jabtak ye qaanoon nahee badlata, kissee bhee qismkee taskaree ko rok nahee lagayee jaa saktee...ek achhaa( sakaratmak) kaam jo pichhale dino Medha Patkarne isee qaanoon aur sujhavon ko leke nyayalay me PIL dhaakhil kee hai..lekin hamaree nyaaywyavasthaape samay kaa koyi bandhan nahee..aise case barson ladte raho..!
4000/- maah waale, nihatthe police constable se duniyaabharkee ummeeden, lekin Mumbaee ke aatankee hamleke baad army kaa badget 3 guna badha, police kaa aadhaa...na training naa hathiyaar...hamaree janata napunsak hai, isliye hamare neta aise hain..!
Hai koyi bahadur jo vidhansabha yaa loksabhaa ke aage khada reh naare lagaye...ke ye ghisepite qaanoon deshko le doob rahe hain...lo mujhe jail bhejo...mere peechhe mai ek shrinkhala khada kartaa hun...hai hame fursat?
Aaj mere saath do aur log mile to meree documentary ban saktee hai...jo jan manas ko jhak jhorke rakh saktee hai..lekin "kahan hain kahan hai,jinhen naaz hai Hindpe wo kahan hain?"
Mai har jokhim leneke liye taiyyar hun...mera jeevan mulk ke samarpit hai...par mujhe ek team chahiye..hai koyee.ekbhi banda,jo mere kandhese khandha milaye?
http//kahanee.blogspot.com
pe meree kahanee," Kab hoga ant" padhen...
Isee Act ko leke diya gaya, shree Bhairav singh Shekhawat kaa bhashan bhee padhe.
Poora frame work taiyyar hai...aur gar log, aur kuchh nahee to Dr Dharamveer National Police Reccommendation (1981) ko leke PIL bhee daakhil karen, to kitnaa kuchh ho saktaa hai...
Gar loktantr me log hosh me nahee to, phir aatank failegaahee...ham hamaaree antargat suraksha yantrana ke in qaanoon tehet haath baandh dete hai...to hame aur kaun bachayega?
Mere harek aalekh, harek, guhaarpe "bahut samayik" aisee hee tippaniyan aatee hain!
बेहतरीन लिखा है आपने.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सटीक और सामयिक रचना, धन्यवाद!
ReplyDeleterockin
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली रचना, कमाल की अभिव्यक्ति है, हरेक पंक्ति प्रेरनादायक है, ..... बधाईंयाँ !!!!
ReplyDeleteसही कहा जब तक हम एक नहीं होंगे इस बीमारी से नहीं लड़ा जा सकता ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ........
अक्षय-मन
thanx for comments on my cartoon
ReplyDeletebaali ji ,
ReplyDeletenamaskar
aapne bahut hi acchi kavita likhi hai aatankwaad ke upar me aur jis tarah se ahwaan kiya hai , wo kaabile tareef hai ....
mera naman hai aapki lekhni ko
namaskar
बहुत ओजस्वी पोस्ट लगाई है।
ReplyDeleteआपकी सशक्त कलम को सलाम।
सहमत हैं जी
ReplyDeleteकभी कभी लगता है कि धर्म केवल शब्दों में उतर कर रह गया है। आत्मा में उतरता और हम आत्मसाक्षात्कारी होते तो यह स्थिति ही नहीं आती। सहज योग करने के बाद ही मैं भी समझ सकी परन्तु अन्दर से सत्य की खोज हो तभी सहज योग भी समझ आता है वरना तो फिर वही बातें हैं बातों का क्या।
ReplyDeleteसम सामयिक रचना.....
ReplyDeletesahi kaha.....hum aatank ko nahi,hindu,muslim,sikh,isaai ko maar rahe hain,bahut badhiya
ReplyDeletebahut hi accha likha hai aapne..badlaav ki bahut jarurat hai !
ReplyDeletebahut achhi rachna hai aapki, aapne bulkul sahi baat kahi hai itne saare dharm milkar ek adharm ko nahi maar paarahe hain
ReplyDeleteaur hum atank ko nahi hindu, muslim, sikh isaayi ko maar rahe hain.
bahut badhaiya, aisi hi ojpurn kavitaon ki awshyakta hai, likhte rahiye
जिंदाबाद बाली जी क्या खूब सच्ची बात कही है आपने...सच है अगर आपके कहे अनुसार हो जाये तो आतंकवाद का जड़ से नाश हो जाए...बहुत प्रेरक और जीवन में उतारने योग्य रचना...बहुत बहुत बधाई..
ReplyDeleteनीरज
Bahut hi sundar hai.
ReplyDeleteBaaki lognon ne itanaa likh diyaa hai, mere paas likhane ko bachaa hi nahin.
Ati sundar!!!
बहुत ही सुंदर रचना,
ReplyDeleteधन्यवाद
आतंकवाद पर विचारणीय रचना, अच्छा चित्रण.
ReplyDelete- विजय
बाली जी आपकी इस रचना पर निशब्द हूँ एक दम सार्थक सशक्त अभिव्यक्ति है बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने चंद शब्दों मे इतनी बडी बात कह दी है आभार्
ReplyDeleteHi,
ReplyDeleteThank You Very Much for sharing this helpful effective article.
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लाजवाब रचना। लोग जाति, धर्म, संप्रदाय और वर्ग को लेकर बंटवारा कर रहे हैं। मैं आपसे निवेदन करूं, मेरी एक वरिष्ठ सहयोगी का पिछले दिनों एक्सीडेंट हो गया। उनका सर फट गया और सर में कई टांके लगाने पड़े। 32 दिनों बाद जब वो ऑफिस आईं उन्होंने मुझे सिर्फ इतना ही कहा, 'प्रवीण अब मैं अपने मन में किसी के प्रति द्वेष न हीं रखूंगी। मैं जब बिस्तर पर थी, कोई लड़ाई, झगड़ा, बुरा भाव नहीं आया। लगा जैसे मेरे बस में कुछ है ही नहीं। ...और अब मैं कोशिश करूंगी हमेशा खुश रहंू, सबके साथ मिलकर।Ó
ReplyDeleteआप सही कहते हैं, धर्म की लड़ाई ही विघटित कर देती है। जरा निचले स्तर पर आते हैं, तो यह जाति में बदल जाती है और नीचे जाओ वर्ग में तब्दील हो जाती है। ...बस संकल्प कर सकते हैं हम अपने-अपने स्तर पर सक्षम प्रयास करेंगे। अपने दिलों मे मैल नहीं रखेंगे। फिर देखिए आपकी कविता कैसे सार्थक नहीं कहलाती।
अच्छी काव्य रचना है। शुक्रिया।
आतंकवाद से लड़ने में राजनीति बाधा डाल रही है.इस राजनीति के आगे जनता लाचार है.
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी.....
ReplyDeleteएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में।आप के सुझावों की आवश्यकता है,देंखे और बतायें.....
यदि कोई अधर्मी धर्मी बन कर बैठा है ...उसे बाहर का रास्ता दिखाएँ ...अच्छी पंक्तियाँ हैं ...आज आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है इसके लिए सभी को सामने आने की जरूरत है ..
ReplyDeleteAtyant prabhavi rachna.badhai.
ReplyDeleteab agar hamne es mudde par gahrai se nahi socha to phir sochne ko wakt hi nahi rahega.... achhi pahal ki hai aapne
ReplyDeleteबाली जी ,
ReplyDeleteआतंकवाद पर एक जोरदार रचना है आपकी .....ब्लॉग के माध्यम से हम रचनाकारों का ये प्रयास कुछ न कुछ तो रंग लायेगा ही .....लिखते रहें .....!!
एक गम्भीर विषय पर आपने समुचित विमर्श किया है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut hi accha badhai
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