Thursday, April 22, 2010

मुर्दो की बस्तीयों में.....


मुर्दो को बस्तीयों में घर हमने बसाया है।
जो रूठ कर बैठा  है,  अपना ही साया है।


बहारों की तमन्ना, करते सभी हैं लेकिन-
सौंगात को यहाँ पर,कब किसने पाया है।


आग सब तरफ है बाहर भी और दिल में,
आतिशे मौसम, क्या लौट फिर आया है।


मज़हब के नाम पर, होते यहाँ धमाके -
या खुदा तूने, कैसा  इंसान  बनाया है।


परमजीत दिल दुनिया, देख पूछता है-
आकर यहाँ  हमने, खोया क्या पाया है।


मुर्दो को बस्तीयों में घर हमने बसाया है।
जो रूठ कर बैठा  है,  अपना ही साया है।

30 comments:

  1. वाह्…………बहुत ही मार्मिक और उम्दा प्रस्तुति।

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  2. बहुत अच्छी रचना है......"

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  3. बहुत सुंदर रचना....

    और

    आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं....

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  4. जो रूठकर बैठा है, अपना ही साया है ।

    अन्तर्द्वन्द को स्पष्ट कर दिया ।

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  5. सब से पहले तो आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
    फ़िर इस अति सुंदर रचना के लिये धन्यवाद

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  6. बहारों की तमन्ना करते सभी है लेकिन
    सौगात को यहाँ पर कब किसने पाया है

    बहुत खूब !

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    अच्छी लगी.

    -Rajeev Bharol

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  8. लाजवाब शेर हैं सब ... बेमिसाल ... ख़ास कर आग सब तरफ है ...

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  9. जनम दिन बहुत बहुत मुबारक ....

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  10. ...बहुत सुन्दर व प्रसंशनीय गजल,बधाई !!!

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  11. sabhi ek se badhkar ek sher the janaab bahut khoob...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  12. बहुत उम्दा रचना के लिये बधाई

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  13. उम्दा ग़ज़ल...आज के परिवेश का सटीक चित्रण करती सुंदर विचारों से सजी लाजवाब ग़ज़ल..बधाई परमजीत जी

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  14. सत्य से लबालब रचना।

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  15. तबियत खुश कित्ती है जी

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  16. बहुत बढ़िया ... आप तो मतला से ही छा गए ...

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  17. मुर्दों की बस्ती तो है, लेकिन इनमें प्राण फूंकने की जरूरत है. दिल के अन्दर की आग को प्रकट कर मजहब के नाम पर धमाके करने वाले हैबानों को सबक सिखाने और बहारों को वापस लाने की जरूरत है.

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  18. behad umda... man me basar kar gayi... shukriya umda rachna dene ke liye..

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  19. niece gazal hriday ki gahrai ko choo gai aise gazlen hindi kavya ko gyey banati hai

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  20. बहारों की तमन्ना करते सभी है लेकिन
    सौगात को यहाँ पर कब किसने पाया है
    Bahut marmik aur samayik rachana. Janmdin shubh ho.

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