पेड़ की ओट में
अपने बच्चों को समेटती
इन गर्म हवाओं और लू की मार सहती
वह गरीब औरत
जो राजधानी मे
पेट भरने को आई थी
परिवार के साथ...
सोच रही होगी-
इस पूरी गर्मी को....
मेरे कितने बच्चे देख पाएगें?
कितने वापिस गाँव जाएगें?
...
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
...बहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteबेशक , ये गर्मी जान लेवा है।
ReplyDeleteदुखद परिस्थितियां ।
यानी कितने बच्चे हैं?
ReplyDeleteअहा । मार्मिक ।
ReplyDeletebada hi maarmik...
ReplyDeletemain to yahee praarthnaa karungaa ki wah apne saare bachche waapas gaanv le jaa peeye !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ...धन्यवाद.
ReplyDeleteमार्मिक...चित्र खुद आपकी कविता कह रहा है.
ReplyDeleteheart rendering, very mournful
ReplyDeletehttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
अत्यंत मार्मिक व्यथा कथा.
ReplyDeleteयही सच है
बहुत ही मार्मिक चित्र, चित्र को कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
माँ,मर्म और मार्मिक पोस्ट
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना , देश की बदहाली और नक्सलवाद के कारणों को बता रही है .
ReplyDeleteMrityunjay Kumar
S/o Madhav
http://madhavrai.blogspot.com
sateek Peerabodh.......sadhuwaad.
ReplyDeleteदर्द को खूब उकेरा शब्दों में आपने जी।
ReplyDeleteदिल छू लेने वाली रचना है.बधाई...
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