(चित्र गुगुल से साभार)
रिम-झिम रिम-झिम बरसा बादल,
बहुत सताया सूरज ने...
सब के तन मन आग लगी है,
बहुत सताया गर्मी ने....
ऊपर वाले अब तो सुन ले,
तू अब तक क्यों सोया है।
महँगाई की मारे खा के,
निर्धन अक्सर रोया है।
तू भी क्यों उस को है रूलाता,
पेश आ उस से नर्मी से।
रिम-झिम रिम-झिम बरसा बादल,
बहुत सताया सूरज ने...
सब के तन मन आग लगी है,
बहुत सताया गर्मी ने ।
गर्मी के कारण यह बंदा,
सूझबूझ सब खो बैठा है।
मत दे अब यह भुगत रहा है
बीज ही ऐसा बो बैठा है।
छोटे छोटे स्वार्थ के कारण,
देश का हित यह खो बैठा है।
वादों पर वादा कर कर नेता,
हसँता है बेशर्मी से।
रिम-झिम रिम-झिम बरसा बादल,
बहुत सताया सूरज ने...
सब के तन मन आग लगी है,
बहुत सताया गर्मी ने....।
साठ बरस मे पीने का पानी,
देश को ना यहाँ मिल पाया।
मिल बाँट कर नेताओ ने,
बहुत लूट कर है खाया।
अब तो होश मे आओ जनता,
सो ना सकोगे गर्मी में।
रिम-झिम रिम-झिम बरसा बादल,
बहुत सताया सूरज ने...
सब के तन मन आग लगी है,
बहुत सताया गर्मी ने....।
इस गर्मी ने मुझ से देखो..
क्या क्या है यहाँ बुलवाया।
ऊपरवाले से बस कहना था..
बरसा बादल, दे छाया।
तन मन के सब ताप हरे जो,
दे निजात इस गर्मी से।
रिम-झिम रिम-झिम बरसा बादल,
बहुत सताया सूरज ने...
सब के तन मन आग लगी है,
बहुत सताया गर्मी ने....
बहुत बढ़िया..."
ReplyDeleteअच्छी भावाभिव्यक्ति.
ReplyDelete...बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय !!!
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
ReplyDeleteक्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
बहुत खूब इस गर्मी ने तो हद कर दी है और इसका असर आपकी कविता में झलक रहा है
ReplyDeletenice
ReplyDeleteगर्मी में फुहारों के चित्र मात्र से मन हर्षित हो गया...काश ये तपन जल्दी मिटे
ReplyDeletesundar rachna.
ReplyDeleteइस तस्वीर का हकीकत में बदलने का इंतज़ार है बेसब्री से ।
ReplyDeleteवत्स
ReplyDeleteसफ़ल ब्लागर है।
आशीर्वाद
आचार्य जी
बहुत बढिया जी ,
ReplyDeleteगर्मी का अहसास कराती बढिया रचना है बाली जी....
ReplyDeleteआभार्!
गर्मी पर लिखी रचना जहाँ सूरज से डराती है वहीँ बारिश मन को आनन्द से भिगो देती है चित्र में..
ReplyDeleteवाकई, इस बार गरमी ने लोगों को बहुत सताया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना..
ReplyDeleteलगता है दिल्ली वालों की तो उपर वाले ने सुन ली है ... बारिश का अंदेशा है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है बहुत ... गर्मी में थोड़ी राहत देती है ...
दूसरा वाला छंद बहुत लाजबाब है ! सुन्दर रचना !
ReplyDeleteक्या सुन्दर लिखा है! गर्मी और महंगाई को मिलकर. बड़ी अच्छी कविता बन गई है. बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteमुझे गर्मी का मौसम बहुत अच्छा लगता है। बचपन में इस मौसम के आते ही मैं खुश हो जाया करता था।
ReplyDeleteछुट्टी जो मिलती थी भाई।
touching lines
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ,,,पहली बार ब्लॉग पर आया बहुत प्रसन्नता हुई ,,,बहुत अच्छा लिखते हो बधाई
ReplyDeleteसच कहा आपने इस गर्मी ने बहुत सताया । अच्छी रचना । आभार
ReplyDeleteगर्मी का अति उत्तम वर्णन....
ReplyDeletenice
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