हमारे पड़ोस मे एक माता जी रहती हैं.....वैसे उम्हें माता जी कहना ठीक नही लगता। क्योकि वे मुझे भाई साहब कहती हैं। अब यह बात अलग है कि उनके बड़े बेटे की उमर मुझ से दो-चार साल ज्यादा ही है। सो मुझे शुरू मे तो अजीब लगा लेकिन अब तो इतना अभ्यस्त हो गया हूँ...कि अब कोई फर्क नही पड़ता...।
बुढ़ा तो हम वैसे ही गए हैं....इस लिए अब तो सब चलता है.......कोई बराबर की उमर का अंकल जी कह दे तो भी।....वैसे इस मे उन बेचारों का भी कोई दोष नही है......अब जब हम पचास-बावन. कि उमर मे भी सत्तर-अस्सी के दिखेगे तो यह सब तो होना ही हैं। सो अब कोई चिंता नही होती......कोई कैसे भी बुलाये। खैर, बात तो हम माता जी कर रहे थे और सूरू हो गए अपनी सुनाने के लिए।....अब तो आप भी हमारी इस बात से समझ गए होगें कि हम सच मे ही बुढ़ा ही गए हैं....।वर्ना एक बात शुरू कर के उसी मे दूसरी बात ना सुनाने लगते।वैसे भी जब कोई इंसान इस तरह करता है तो समझ लो की बुढ़ा गया है या फिर बुढ़ानें वाला है ।
हाँ..तो वह जो माता जी हैं उन का मकान गली में कोने का है। सो जो भी आता है अपनी कार लेकर या स्कूटर लेकर.......वही उन के घर के सामने खड़ा कर के चुपके से खिसक लेता है....।जब माता जी बाहर निकलती हैं...तो परेशान हो कर चिल्लाना शुरू कर देती हैं.....।लेकिन लोग भी इतने ढीठ हैं..कि उन पर कोई असर नही होता। एक तो माता जी अपने बेटे बहू से वैसे ही दुखी हैं.....दूसरे यह लोग-बाग उन्हे और दुखी कर देते हैं। माता जी अक्सर अपना रोना मेरे सामने रोती रहती हैं.....उनका बेटा हुआ ना हुआ बरबर ही है.......जरा जरा सी बात पर माँ को गालीयां निकालने लगता है....धकियाता है।बहू और उन के बच्चे ऐसे हैं....जिन्हें वह बचपन में सारा दिन खिलाती रहती थी....अब माता जी के आस-पास भी नही फटकते और बहू ऐसी है कि कभी सीधे मुँह उस से कभी बात ही नही करती।......अब तो माता जी को बहू-बेटे ने एक अलग कमरे में पटक दिया है.....जिस मे ना तो बिजली-पंखा है......और पानी माता जी पड़ोस के घर से भरती हैं। बेटा पानी तक नही लेने देता। शुरू शुरू मे तो बेटे को सभी ने समझाने की कोशिश की थी......लेकिन जब वह समझने को ही तैयार नही तो कोई क्या करे?
अब इस आलेख को लिखते हुए तो हमें भी पूरा विश्वास हो चुका है कि हम बुढ़ा ही गये हैं।वर्ना जो घटना या बात आप से कहना चाहते हैं.सीधे उसी की बात ना करते? हुआ ऐसा कि एक बार हमारे पड़ोसी को सूझी कि माता जी के घर के आगे अपनी कार खड़ी करनी शूरू कर दे.....सो वह महाशय अब रोज सुबह साम माता जी को नमस्ते व वरण स्पर्श करने लगे।...जब उन्होनें अपनी ओर से समझ लिआ कि माता जी अब उन से कूब हिलमिल गई हैं....तो अगले दिन अपनी कार उनके दरवाजे पर खड़ी करने की गरज पहले तो उनका चरण स्पर्श किया फिर नमस्ते कर चलने को हुए तो माता जी ने कहा- "नमस्ते तो भैया ठीक है.....लेकिन पहले यह अपनी कार यहाँ से हटा लो..." यह सारा तमाशा आस-पास और लोग भी देख रहे थे...अत: सभी के चहरे पर एक हल्की सी मुसकराहट फैल गई थी।सो वह महाशय अपनी इज्जत का इस तरह कबाड़ा होता देख कर वहाँ से कार ले तुरन्त नौ दो ग्यारह हो गए। उस दिन के बाद उन महासय को कभी माता जी को नमस्ते करते नही देखा गया।
उन महाशय के जाने के बाद माता जी...हमारे पास आई और बोली-
"भैया!..ये लोग बड़ो को बेवकूफ समझते हैं.....सो अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाना चाहते हैं।.....अरे ! जब तुम्हारे पास कार पार्क करने की जगह ही नही है तो कार लेते क्यों हो?"
माता जी बात सुन कर मै भी यह सोचने पर मजबूर हो गया कि माता जी बात तो सहि कह रही हैं.....आज लोगों ने इतनी कारें खरीद ली हैं....कि घर से बाहर निकलना कई बार मुश्किल हो जाता है..आए दिन कार पार्क करने को लेकर लोग झगड़ते रहते हैं.....।पुलिस तक बात पहुँच जाती है कई बार तो... और सरकार को यह सब नजर नही आता। वह सब्जी वालों और रेहड़ी वालों को तो जब तब लताड़ लगाती रहती है लेकिन इस समस्या की ओर से सदा आँखें मूदें रहती है.....वोट का सवाल जो है.....
वोट से बड़ा कुछ नहीं....
ReplyDeleteनमस्ते भी आज कल लोग बिना मतलब के नहीं करते। अगर कोई कर भी ले तो सोचते हैं कि अब यह कोई काम बताएगा।
ReplyDeleteराम राम
जो पार्किंग स्कूटर इत्यादि के लिये बनी थीं वहाँ कारें खड़ी हो रही हैं । माता जी का कहना ठीक है ।
ReplyDeleteऐसे ही हादसे से अभी 2-4 हो कर चुकी हूँ…………क्या करें बुरा हाल है।
ReplyDelete"सही लिखा आपने "
ReplyDeleteaapne ek post me kai mudde uthae.........
ReplyDeleteMatajee kee dayneey sthitee pad dukh huaa.........ishwar santano ko satbuddhee de..........
कुल मिलाकर ये है कि स्थिति ठीक नहीं है ।
ReplyDeleteएक बेहद ही अच्छा विषय लिया है आपने. आज कल जब देखो जहाँ देखो कार पार्किंग को ले कर झगड़ा होता रहता है हमारे पड़ोसी तो जब तब लड़ लेते हैं.जहाँ तक नमस्ते की बात है बिलकुल सच है आजकल तो मतलब का जमाना है अपने मतलब पर नमस्ते तो छोड़ कुछ भी कर सकते हैं
ReplyDeleteअभी एक चार साल के बच्चे ने मुझे अंकल कह दिया था.... बहुत टेंशन हो गई थी.... मुझे.... संस्मरण रुपी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
ReplyDeleteवैसे बुढ़ा तो गये हो, तब काहे नहीं मान लेते. हा हा!!
ReplyDeleteनमस्ते जी,
ReplyDeleteचिन्ता मत करिये, हमारे पास कार नहीं है।
लो हम भी बुढा गये हैं एक टिप्पणी देने चले ही आये। नमस्ते जी। अब आप ये तो कह नही सकते कि टिप्पणी हटा लीजिये____ । हा हा हा ।
ReplyDeletenice writing
ReplyDeleteनमस्ते जी,
ReplyDeleteमाता जी का कहना ठीक है। सही लिखा आपने।
aapne mata ji ki baat ka samarthan main bhi karti hun.kyon ki aaj kal bina matlab ke koi kisi ko ghas nahi dalta hai.matlab ka jamanajo hai.
ReplyDeletepoonam
badhiya........:)
ReplyDeletemere ko uncle agar koi kahe, to mere shrimati jee ko achchha lagta hai, aur agar wo uncle kahne wali koi female ho to khushi jayda badhh jati hai........:D
शायद वो दिन दूर नहीं जब एक कमरे से दुसरे कमरे में भी लोग कार ले कर ही जाएँ.
ReplyDeleteजहाँ तक बात सरकार की है तो फिर....
आपकी नई पोस्ट का इंतज़ार है....
ReplyDeleteमतलब का संसार है ।इसी पर एक शेर याद आ गया-
ReplyDeleteदिले नादान सब धोखा है
ये दुनिया एक धोखा है
यहाँ कौन किसी का है !!
आपने एक सही समस्या की ओर इंगित किया है. कार पार्किंग ही नहीं, सडकों पर बहुत अधिक कारें आना भी एक समस्या हो गया है.मैं ऐसे कुछ लोगों को जानता हूँ जो समुचित पार्किंग व्यवस्था न होने के कारण कार नहीं खरीद पा रहे हैं.
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ReplyDeleteअपना इर्द-गिर्द पड़ोस अक्सर नजर-अंदाज हो जाता है. खुली आंख का खुले दिल से बयान.
ReplyDeleteवर्णन अच्छा लगा..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteएक समस्या को बताते हुए बहुत शानदार तरीके से दूसरी समस्या भी बता डाली...