तुम्हारा हाल क्या पूछे अपना हाल तुम-सा है....
हरिक दोस्त भी अपना खुद में आज गुम-सा है।
मोहब्बत मे वफा वादे कसमें कौन समझा है ।
गुल के साथ खारों को यहाँ पर कौन समझा है।
बहारों की तमन्नायें यहाँ हर दिल में खिलती है,
मौसम एक-सा रहता नही ये कौन समझा है।
उन्हें उम्मीद है , दिन आज नही कल बदलेगें ।
गिरे हैं आज तो क्या है हम कल तो संभलेंगें।
रास्तों मे नदी नालों पहाड़ों का बसेरा है,
आयेगा जब वक्त अपना रास्ते भी तो सँवरेगें।
रही किस्मत हमारी तो खुदा मेहरबां होगा।
दोस्तों में अपना भी कोई तो कद्र-दां होगा ।
मोहब्बत को समझेगा वफा़यें मेरी समझेगा,
जहां में कहीं कोई अगर फटेहाल मुझ -सा है।
तुम्हारा हाल क्या पूछे अपना हाल तुम-सा है....
हरिक दोस्त भी अपना खुद में आज गुम-सा है।
आत्मीयता की नदी सिकुड़ती जा रही है, आनन्द का अन्न कहाँ से आयेगा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteमैंने सिर्फ इशारा किया
बहुत खूब.....!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकल 02/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
...'' स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर रचना......
ReplyDeleteरास्तों में नदी नालों पहाड़ों का बसेरा है,
ReplyDeleteआएगा जब वक्त अपना रास्ते भी तो सँवरेंगे.
सुन्दर पंक्तियाँ
मुश्किलें रास्तों मे तो बहुतसी आती रहती हैं
ReplyDeleteहमें उम्मीद है हमारे रास्ते मंजिल तक जायेंगे ।
बहुत सुंदर रचना ।
खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब ... मन के भाव लोख दिये आपने ...
ReplyDeletesashat v behad hi prabhav shali post---
ReplyDeleteummid ki bhavnao se bharpur---
poonam
बहुत सुन्दर भाव हैं,खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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