ये कैसे लोग दिख रहे हैं वतन में मेरे
नश्तर -से चुभोते हैं ये बदन पे मेरे।
किससे करे शिकायते थानेदार हैं वो-
कोहराम -सा मचा है अमन में मेरे।
कोई सुनता नही किसी की बात यहाँ
देश भक्त बन बैठे है घात लगाये यहाँ
अब कौन बचायेगा इन जयचंदों से..
उम्मीद दम तोड़ चुकी लगता है यहाँ।
जनता भेड़ चाल चलने की आदी है
गजब की बढ रही यहाँ आबादी है
कत्ल करने वाले यहाँ पद पाते हैं
इसी राज मे छुपी देश की बर्बादी है।
मन को छू जाती रचना। पता नहीं, जनता यह सब क्यों नहीं समझती है।
ReplyDeleteकविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं....बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteसच है!!!
ReplyDeleteमगर उम्मीदों को मरने ना दिया जाये......
सादर.
Desh ke haalat ka Sahi anklan kiya hai ...Jaichandon ki bharmaar ho gayi hai aaj ..
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... शीर्षक और चित्र .
उम्मीद है तो सब है .... सत्य को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteउम्मीद नहीं टूटनी चाहिए
ReplyDeleteसत्य कहती रचना....
उम्मीद है तो जहान है;;;;;सुन्दर भाव...
ReplyDeleteऐसे ही ख्याल आते रहते हैं मनमें, पर हौसला बनाये रखना है
ReplyDeleteउम्मीद पर दुनिया क़ायम है|
ReplyDeleteधन्यवाद !
अति उत्तक प्रश्तुति
ReplyDeleteयूनिक तकनीकी ब्लाग