Sunday, May 20, 2012

मरी हुई उम्मीदे



ये कैसे लोग दिख रहे हैं वतन में मेरे
नश्तर -से चुभोते हैं ये बदन पे मेरे।
किससे करे शिकायते थानेदार हैं वो-
कोहराम -सा मचा है अमन में मेरे।

कोई सुनता नही किसी की बात यहाँ
देश भक्त बन बैठे है घात लगाये यहाँ
अब कौन बचायेगा इन जयचंदों से..
उम्मीद दम तोड़ चुकी लगता है यहाँ।

जनता भेड़ चाल चलने की आदी है
गजब की बढ रही यहाँ आबादी है
कत्ल करने वाले यहाँ पद पाते हैं
इसी राज मे छुपी देश की बर्बादी है।



11 comments:

  1. मन को छू जाती रचना। पता नहीं, जनता यह सब क्यों नहीं समझती है।

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  2. कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं....बहुत सुन्दर कविता...

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  3. सच है!!!
    मगर उम्मीदों को मरने ना दिया जाये......

    सादर.

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  4. Desh ke haalat ka Sahi anklan kiya hai ...Jaichandon ki bharmaar ho gayi hai aaj ..

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  5. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24 -05-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... शीर्षक और चित्र .

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  6. उम्मीद है तो सब है .... सत्य को कहती अच्छी रचना

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  7. उम्मीद नहीं टूटनी चाहिए
    सत्य कहती रचना....

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  8. उम्मीद है तो जहान है;;;;;सुन्दर भाव...

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  9. ऐसे ही ख्याल आते रहते हैं मनमें, पर हौसला बनाये रखना है

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  10. उम्मीद पर दुनिया क़ायम है|
    धन्यवाद !

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