अनुत्तरित प्रश्न-१
हर खेल
जीतने के लिये
खेला जाता है।
फिर क्यूँ.....
हम अपने जीवन को
हार कर जाते हैं ?
अंत मे अपने को
अकेला पाते हैं।
अनुत्तरित प्रश्न-२
अपनी थाली का लड्डु
हमेशा छोटा क्यों लगता है?
इंसान के मन में
ऐसा भाव क्यों जगता है ?
अनुत्तरित प्रश्न-३
इन्सान किस लिये आता है?
फिर कहाँ चला ये जाता है?
जीवन -भर दोड़ लगाता है।
दोड़-दोड़ थक जाता है।
कहीं पहुँच नही पाता है।
खुशी मे मुस्कराता है।
गम में आँसू बहाता है।
बेमतलब के इस जीवन को,
फिर भी जीना चाहता है।
बस यही प्रश्न उत्तर ढूढ़ने के श्रम के योग्य हैं..
ReplyDeleteइंसान यदि इन प्रश्नों के उत्तर हल कर ले ,,,तो महान आत्मा "ईश्वर" न बन जाए,,,,,
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 5/6/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
ReplyDeleteइन सवालों के जवाब में उलझा मन ...
ReplyDeleteइन प्रश्नों का जवाब तो ज्ञानियों के पास भी नहीं ... इश्वर की माया वो ही जाने ...
ReplyDelete्कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं।
ReplyDeleteजीवन के बहुत से और भी अ्त्तनुरित प्रश्न है..जिसमें हम अकसर उलझकर रहजाते है..
ReplyDeleteसचमुच अनुत्तरित....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
सादर।
दिशाओं पर ताले क्यूँ ? अनुत्तरि प्रश्नों को आगे ले जाने के लिए ताले हटा दीजिये
ReplyDeleteआपके प्रश्नों के उतर ....
ReplyDeleteआपके प्रश्नों में ही छुपें हैं ....
बस! येही तो ढूँढना है ...???
शुभकामनाएँ!
अगर आपको उत्तर मिलें तो हमे भी बतायें। शुभकामनायें।
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