हर रात
नया सपना
जन्म लेता है।
हर सुबह
वह अपना दम तोड़ देता है ।
अंधेरे और रोशनी की
इस लड़ाई में,
कौन जीता
यह दिखाई नही देता है।
फिर भी छूटता नही,
सपने बुनने का चलन।
एक की जगह
दूसरा ले लेता है।
बस बुनते रहो और टूटते हुए देखो,
जीवन क्या यही,
बस हमें देता है?
बाली जी बहुत गहरी बात कही आपने. इस कविता का दर्शन हम मे से बहुतों के जीवन पर भी लागू होता है. पर मन फ़िर भी एक ही बात कहता है.
ReplyDelete" वो सुबह कभी तो आयगी
जब पूरे होंगे सपन हमारे."
सपने
ReplyDeleteसपने
पूरे हो जायें तो अपने
नहीं तो सपने
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2006/10/sapanay.html
ati sunder....
ReplyDeleteसच बात कही आपने. बहुत सुंदर शब्द और उतने ही सुंदर भाव.
ReplyDeleteवाह..वा ...
नीरज
लयबद्ध काव्य।
ReplyDeleteयदि कविता कवि का अपना मर्म है तो मर्म का हल बहुत आसान है।
संजय गुलाटी मुसाफिर
sapno ko sahi sakar kiya hai,ek gaya tho duja janam leta hai,bahut badhiya.
ReplyDeleteWhatsapp status video download
ReplyDeleteGood information nice
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