१.
जो आदम खोर
अपने को दूसरों से
ज्यादा दयालू बताएगा।
वही तो
भ्रम में पड़ी जनता से
"यह" सम्मान पाएगा।
२.
जीतना और सम्मान पाना,
दोनो अलग बात हैं।
जीतने वाला,
साम दाम दंड भेद से ,
जीत जाएगा।
यदि वह संत नही,
शैतान है तो,
शैतान ही कहलागा।
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
आपकी समसामयिक क्षणिकाएँ अच्छी लगी , आपने तो चाँद पंक्तियों में राजनीति की नई परिभाषा हीं गढ़ दी है , बधाईयाँ !
ReplyDeleteआज के हालत पर बहुत ही सटीक लेखनी चली है आपकी .
ReplyDeleterajniti se hum bahut door hi rehte hai,par apne to kuch hi panktiyon mein kya khub rajniti ki kshanikaye likhi hai wah,ghambhirta bhi hai aur thodi mishkili bhi.hum soch mein bhi pad gaye,aur muskura bhi rehe hai.maza aa gaya padhkar.
ReplyDeleteआपकी दूसरी कविता कुछ इअसे व्यक्ति पर व्यंग करती दिखती है, जिसे जबरन एक सामान्य आदमी से शैतान के रूप में प्रचारित किया गया।
ReplyDeleteकिसे?
भाई यह भी बताना पडे़गा.. वही जो अपने आप को कॉमन मैन कहते हैं क्यों कि वे है भी।
:)
आज की राजनीति पर अच्छा कटाक्ष किया हॆ.
ReplyDeleteइसका समय साध कर लायें है - ताकि सनद रहे - बहुत बढ़िया - इंसान और एक सवाल भी बहुत अच्छे लगे
ReplyDeleteभाई शैतानियत की परिभाषा बदल गयी है, अब लोग शैतान कहलाना फक्र की बात मानते हैं।
ReplyDeletemar gye hum aam aadmi ki baat karte hai garibi to khatam nhn hoti gareeb ko khatam kar dena chahte hai
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