बुझी है आग तो फिर पानी बरसा है,
भरी दोपहरी में, मन बहुत तरसा है।
जब तलब थी, कहीं और, जा बैठे,
आँख का सावन, बहुत बरसा है।
हर घड़ी याद किया, खुद को, भूले थे,
लगता है यादो का,हम पर, कर्जा है।
अब ये आना तेरा,खुशी, क्या देगा,
आज कयामत का कहर बरसा है।
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
वाह! बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहर घड़ी याद किया, ख़ुद को, भूले थे
ReplyDeleteलगता है यादों का, हम पर, कर्जा है .......
सुंदर पंक्तियाँ।
wah baali sahab... aapka naya chehara dekhane ko mila bada hi lubhavan... maja aagaya padhke ...
ReplyDeletearsh
हर घड़ी याद किया, खुद को, भूले थे,
ReplyDeleteलगता है यादो का,हम पर, कर्जा है।
अब ये आना तेरा,खुशी, क्या देगा,
आज कयामत का कहर बरसा है।
waah bahut hi badhiya
क्या खूब है, वाह जी वाह
ReplyDeleteवाह्! अति सुन्दर रचना.......बहुत खूब
ReplyDeleteएक बात कहना चाहता हूं कि वैसे तो कविता/गजल इत्यादि के बारे में मेरे जैसे इन्सान को कुछ भी नहीं मालूम्,किन्तु जो मन को अच्छा लगे उसे समझने की एक नाकामयाब सी कौशिश जरूर कर लेते हैं.
अब ये आना तेरा,खुशी, क्या देगा,
आज कयामत का कहर बरसा है।
यहां नीचे की पंक्ति में बरसा की अपेक्षा बरपा शब्द होता तो शायद ज्यादा अच्छा रहता.किन्तु आप इसके बारे में ज्यादा अच्छे तरीके से जानते हैं. मैने तो वैसे ही जो मन में आया,कह दिया.कृ्प्या आप इसे अन्यथा न लें.
jab talab thi kahin aur ja baithe
ReplyDeleteaankh ka sawan bahut barsa hai
in panktiyon ne to talab ka bahut gahre ahsaas kara diya...........bahut kuch bayan kar diya.
vaise to poori hi nazm bahut badhiya hai magar kahar jab barasta hai to kayamat hi hoti hai..........kya kuch kah diya aaj to aapne.
डी के शर्मा जी,
ReplyDeleteबरपा नहीं हो सकता क्योंकि काफिया, रसा है
परमजीत जी,
1)आपकी गज़ल में बरसा का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल है, इस से आपके शब्दकोष की कमी दिखाई पड़ती है
2)कर्ज़ा आप काफिये के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि आपका काफिया, रसा होगा, ये मतले में ही तय हो गया है।
3) काफिया हमेशा, ऐसा चुनें जिस से आप ज़्यादा शेर बना सकें, इससे मिलते जुलते काफिये ढूँढने में मुश्किल आई होगी
अरसा, बरसा, तरसा, और तो मुझे भी नहीं सूझ रहे।
परमजीत जी
ReplyDeleteसुन्दर बोल, सुन्दर प्रस्तुति, हर शेर लाजवाब, खूबसूरत, बागी तेवर में लिपटी रचना
परमजीत जी आप की यह गजल भी हमे तो बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteइस सुंदर गजल के लिये आप का ध्न्यवाद
चोट को नज़्म बना दिया, वाह!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
Gar Man me abhilasha nahi jagti to aap likhate kaise ha? Jut mat bolie.
ReplyDeleteEse ek writer ko and creative writer ko to bot avilashawan hona chahie?
जब ज़रूरत थी तो कही और ....
ReplyDeleteआँखों की बारिश........गहरे भावों को जीवंत कर दिया....
बहुत ही भाव विभोर करती है आपकी लेखनी । सुंदर लेखन एक बार फिर से ।
ReplyDeleteBahut achchhee bhavpoorna rachna...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत उम्दा...बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteहर घड़ी याद किया, खुद को, भूले थे,
ReplyDeleteलगता है यादो का,हम पर, कर्जा है।
अब ये आना तेरा,खुशी, क्या देगा,
आज कयामत का कहर बरसा है....
Balle Balle ...Bali ji, tusi te baija baija kar ditti...!! Vadhaiyan ji vdhaiyan...!!
बाली जी,
ReplyDeleteन गजल के बारे में पता है मुझे,न कविता के
बस जो भी दिल मे आता है ,लिख देती हू "मेरे मन की"---
आपकी पोस्ट पढने के बाद---
"बैठ्ने को रत्ती भर जगह भी नहीं,
घर में मेरे दुखॊं का जलसा है।"
baali ji
ReplyDeletesorry for late arrival , i was on tour.
aapki ye gazal padhkar maza aa gaya sir,
aakhri she to ultimate hai sir, this is the best of you ..
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
कई बार पढ़ा, बार-बार पढ़ा वाह वाह!
ReplyDeleteaap bhut accha likhte hai
ReplyDelete