हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Friday, March 20, 2009
गजल
जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।
दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।
दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।
हमें भेजनें वाले ,थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं ।
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हमें भेजनें वाले ,थी क्या खता हमारी ,
ReplyDeleteपत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं
waah behad lajawab
khub....
ReplyDeleteहमें भेजने वाले, क्या थी खता हमारी
ReplyDeleteबहुत खूब है ग़ज़ल.......
इन लाइनों में जिंदगी का रस निचोड़ दिया है आपने, लाजवाब
एक बेहतरीन ग़ज़ल.....गुनगुनाने का मन हुआ
ReplyDeleteबहुत खूब ......
ReplyDeleteगर सुख के हों जाम,
ReplyDeleteहमेशा हँस-हँस कर पी जाना।
गम सीने भरे अगर हों,
हाथों में मत जाम उठाना।
आदरणीय बाली जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल ...बधाई.
हेमंत कुमार
दर्द की सुंदर अभियक्ति है.लेकिन इतना निराशावादी होना भी ठीक नहीं.
ReplyDeleteवाह बाली जी कमाल कर दिया, आनन्द साहब की याद आ गयी!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
cool gazal.. i liked it...
ReplyDeletebahut badiya likha haa...........
ReplyDeletesach kahun to ye gazal acchi to hai....magar bahut acchhi to katyi nahin.....!!
ReplyDeleteबहुत खूब ,लाजवाब.
ReplyDeleteहमें भेजने वाले , थी क्या खता हमारी
ReplyDeleteपत्थरों के इस जहां में ,किसे दर्द ये बताएं
वाह वाह...! बहोत खूब...!!
बहुत ख़ूब बाली जी। वाह वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअच्छी है.....बस थोडी-सी हलकी.....परमजीत की पढ़ी हुई रचनाओं से थोडी कमतर.....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
ReplyDeletebahut umda...bhut accha
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