Friday, March 20, 2009

गजल


जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।

दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।

दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।

हमें भेजनें वाले ,थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं

20 comments:

  1. हमें भेजनें वाले ,थी क्या खता हमारी ,
    पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं
    waah behad lajawab

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  2. हमें भेजने वाले, क्या थी खता हमारी

    बहुत खूब है ग़ज़ल.......
    इन लाइनों में जिंदगी का रस निचोड़ दिया है आपने, लाजवाब

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  3. एक बेहतरीन ग़ज़ल.....गुनगुनाने का मन हुआ

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  4. गर सुख के हों जाम,

    हमेशा हँस-हँस कर पी जाना।

    गम सीने भरे अगर हों,

    हाथों में मत जाम उठाना।

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  5. आदरणीय बाली जी ,
    बहुत सुन्दर गजल ...बधाई.
    हेमंत कुमार

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  6. दर्द की सुंदर अभियक्ति है.लेकिन इतना निराशावादी होना भी ठीक नहीं.

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  7. वाह बाली जी कमाल कर दिया, आनन्द साहब की याद आ गयी!

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    गुलाबी कोंपलें

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  8. sach kahun to ye gazal acchi to hai....magar bahut acchhi to katyi nahin.....!!

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  9. हमें भेजने वाले , थी क्या खता हमारी
    पत्थरों के इस जहां में ,किसे दर्द ये बताएं

    वाह वाह...! बहोत खूब...!!

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  11. अच्छी है.....बस थोडी-सी हलकी.....परमजीत की पढ़ी हुई रचनाओं से थोडी कमतर.....!!

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