हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
Monday, February 1, 2010
किसी से भी नही गिला.....
संभल कर जब भी चला
सिवा ठोकर के मुझे क्या मिला ?
लेकिन मुझे इस बात का
किसी से भी नही गिला।
क्योंकि मेरा संभलना,
उन मेरे अपनों के लिए
दुखदाई हो जाता है।
जिन्हें मेरी लापरवाही से चलना
बहुत भाता है।
इसी लिए मेरा इस तरह चलना
उन्हे रास्तों मे पत्थर रखने को
मजबूर करता है।
उनके भीतर
ईष्या को भरता है।
ऐसे में जब भी मैं ,
अपने आप से पूछता हूँ...
इस ईष्या को
जन्म देना वाला कौन हैं ?
मेरे भीतर से
कोई आवाज नही आती,
वहाँ सिर्फ मौन है।
इस मौन की परतों को
अक्सर मै खोलता रहता हूँ
इस उम्मीद के साथ....
शायद कभी ,कहीं, बहुत गहरे में,
छुपा कोई उत्तर मुझे मिल जाए....
पत्थर रखने वालो के मन में,
कोई फूल खिल जाए।
इस तरह उनका भी होगा भला,
मेरा भी होगा भला।
लेकिन मेरे विश्वास ने
हर बार है छला।
लेकिन मुझे इस बात का
किसी से भी नही गिला।
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बहुत बढ़िया भाई..वाह!
ReplyDeleteबेहतरीन। बधाई।
ReplyDelete.... prabhaavashaali rachanaa, badhaai !!!!
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति ,बधाई
ReplyDeleteParamjeet ji
ReplyDeleteaajkal insaan ko jyadatatardhokha hi milata hai,chaahe vo thokar patthar dwaara hi
hi kyon na mili ho.iswar par bharosa kar ke apane
viswaas par viwaas karen.shubh kamanaon ke saath .
Poonam
बेहतरीन। बधाई।
ReplyDeletewaah.............behtreen prastuti.
ReplyDeleteshayad aapke blog par pahlibaar ana hua.. aur itni sundar rachna hamein padhne ko mili...
ReplyDeletedhanyawaad sir ji....
ReplyDeleteSundar aur bhavpurn abhivyakti.shubkamnayen.
ReplyDeletesambhl ka chalna bhi to jaruri hai
ReplyDeletesundar racna
आपके विचार दिल की गहराईयों को छूते हैं।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता..... आपने तो निःशब्द कर दिया....
ReplyDeleteमेरे विश्वास ने मुझे हर बार छला है
ReplyDeleteफिर भी किसी से गिला नहीं
बाली जी दिल को छू गयी आपकी रचना शायद ये कबीर वाणी का प्रभाव है । बहुत सुन्दर रचना है बधाई
bahut hi gehra aur sunder
ReplyDelete-Sheena
nice
ReplyDeleteशिधाई से दिल की बात कही गयी है बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबस कहीं कहीं लगा की कविता करने पर जोर दे रहे हैं आप. ऐसा बस मुझे लगा इसके लिए दिल पर बोझ न लीजियेगा अगर मैं कवि होता तो शायद ये शिकायत न करता
बहुत बढ़िया!
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