अपने
अधूरेपन की तलाश
मुझे यात्रा पर ले जाती है।
जहाँ वह मुझे
अन्जान रास्तो पर
अंन्जान लोगो के बीच
बहुत खेल खिलाती है।
मेरा तमाशा बनाती है।
लेकिन
मेरी हताशा देख कर
कोई आवाज
मुझे बुलाती है
मुझे समझाती है-
इस जिज्ञासा को
जलाए रखे
अपने भीतर।
देर सबेर रास्ता
मिल ही जाएगा।
जब कोई
अपने भीतर
अपने को पाएगा।
बिल्कुल मिल जायेगा..उम्दा रचना...बधाई.
ReplyDeleteजज़्बा तो उम्दा ही है, मिलेगा ही। जारी रहे।
ReplyDelete.....प्रभावशाली रचना!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर व प्रभावशाली कविता....
ReplyDeleteसही बात है बिलकुल मिल जायेगा गहरी सोच की प्रतीक कविता है। धन्यवाद्
ReplyDeletebilkul sahi baat kahi.......behad umda.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti..aabhar!!
ReplyDeleteखोज जारी रखें। अच्छा प्रयास है, खुद को ढूँढने का ।
ReplyDeleteइस जिज्ञासा को जलाये रखें अपने भीतर देर सवेर रास्ता मिल ही जायेगा ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
प्रभावशाली सुंदर रचना है.
ReplyDeleteदेर सबेर रास्ता
मिल ही जाएगा
जब कोई
अपने भीतर
अपने को पायेगा.
आशावादी सुन्दर भाव हैं.
महावीर शर्मा
jajba hai to sab kuch hasil hai :)
ReplyDelete"इसी अंतर की सच्ची तलाश साधारण मनष्य को कृष्ण,बुद्ध या फिर ईसा मसीह बना सकती है कविता का भाव बेहतरीन है.."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
सुन्दर! यात्रा पूर्णता पाने को ही होती है।
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