शिकायत किसी से क्या कीजिए।
खुद अपना दामन बचा लिजिए।
बहुत धोखा खाया है चेहरों से हमने,
मुखौटा ये अपना हटा लीजिए।
पहचानते हैं हम भी अपना पराया
ऐसे ख्याल ना भीतर पालीए।
कदम अब संभल कर हम रख रहे हैं,
मंजिल तक पहुँचे दुआ कीजिए।
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
aameen
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबढ़िया...गज़ल तो नहीं कह रहे हैं इसे..मगर भाव उम्दा हैं.
ReplyDeleteparyas aachha hai......
ReplyDeletebhawana achchi haen
ReplyDeletebबाली जी बहुत अच्छी रचना है । हमारी दुयाएं हैं कि आप मंजिल तक जरूर पहुँचेंगे। धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत खूब ..........
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है .. ऐसी भावनाएं हो तो मन को तकलीफ नहीं पहुचती है !!
ReplyDelete"बेहतरीन रचना.."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
bahut hi umda.
ReplyDeletewaah, behtareen khyaalon ko sanjoya hai
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteकर रहे हैं भाई।
ReplyDeleteबढ़िया।
आमीन ........
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है .... किसी से क्या शिकायत कीजिए ....
बाली जी किद्दां हो .....??
ReplyDeleteदुआ है तुहाडे लई .......!!
वाह वाह मज़ा आ गया बहुत जोश भर दिया वैसे हम तो पहले भी यही दुआ कर रहे थे
ReplyDeleteबहुत धोखा खाया है चेहरों से हमने,
ReplyDeleteमुखौटा ये अपना हटा लीजिए।
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वाह!
सुन्दर भाव...उम्दा रचा आपने.
ReplyDelete......................................
"शब्द-शिखर" पर इस बार अंडमान के आमों का आनंद लें.
बहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर रचना मिसरे अच्छे है
आभार ...............
Adaraneeya Balee jee,
ReplyDeleteapakee is gajal ka to hara sher lajavab hai...sundar bhavanaonkee abhiyakti.
Poonam