१.
छोटे लोगों की
छोटी चोट भी
बड़ी होती है ।
इसी लिए
अपनी आँख सदा
ज़ार-ज़ार रोती है।
२.
छोटेपन का एहसास
मुझे तब हुआ ।
जब मेरे सच पर भी,
उन्हें शक हुआ।
३.
इक छोटी-सी बात थी
पर रात भर चली।
बिन शब्दों के, बिन दीये के,
रात भर जली ।
सुबह उसी जगह पर
राख थी पड़ी ।
४.
बड़ी बात भी
छोटी हो जाती है।
जब वह बात भी
हरिक मन को भाती है।
चौथी कविता मन को छू गई, बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविताएं है। कम शब्दों मे पूरी बात कहती।
ReplyDeleteपरमजीत बाली जी
ReplyDeleteबहुत भावुकता पूर्ण कविता है।
दीपक भारतदीप
परमजीत बाली जी
ReplyDeleteबहुत भावुकता पूर्ण कविता है।
दीपक भारतदीप
अच्छी लगी ये लघु कवितायें मित्र.
ReplyDeleteबात सदा छोटी होती है. बड़ी बात भी छोटी बातों का समग्र ही होती है!
छोटेपन का एहसास
ReplyDeleteमुझे तब हुआ ।
जब मेरे सच पर भी,
उन्हें शक हुआ।
--वाह महाराज, बहुत खूब कह गये. बधाई.
"छोटे लोगों की
ReplyDeleteछोटी चोट भी
बड़ी होती है ।"
बडे लोगों द्वारा की गई
छोटी चोट भी
बहुत बडी होती है !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!
बहुत सुंदर ...वाह पढ़कर आनंद आ गया...बधाई
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