Monday, September 3, 2007

छोटी-छोटी बातें

१.


छोटे लोगों की
छोटी चोट भी
बड़ी होती है ।
इसी लिए
अपनी आँख सदा
ज़ार-ज़ार रोती है।


२.


छोटेपन का एहसास
मुझे तब हुआ ।
जब मेरे सच पर भी,
उन्हें शक हुआ।


३.


इक छोटी-सी बात थी
पर रात भर चली।
बिन शब्दों के, बिन दीये के,
रात भर जली ।
सुबह उसी जगह पर
राख थी पड़ी ।


४.


बड़ी बात भी
छोटी हो जाती है।
जब वह बात भी
हरिक मन को भाती है।

8 comments:

  1. चौथी कविता मन को छू गई, बहुत सुन्दर।

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  2. बहुत अच्छी कविताएं है। कम शब्दों मे पूरी बात कहती।

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  3. परमजीत बाली जी
    बहुत भावुकता पूर्ण कविता है।
    दीपक भारतदीप

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  4. परमजीत बाली जी
    बहुत भावुकता पूर्ण कविता है।
    दीपक भारतदीप

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  5. अच्छी लगी ये लघु कवितायें मित्र.
    बात सदा छोटी होती है. बड़ी बात भी छोटी बातों का समग्र ही होती है!

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  6. छोटेपन का एहसास
    मुझे तब हुआ ।
    जब मेरे सच पर भी,
    उन्हें शक हुआ।

    --वाह महाराज, बहुत खूब कह गये. बधाई.

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  7. "छोटे लोगों की
    छोटी चोट भी
    बड़ी होती है ।"

    बडे लोगों द्वारा की गई
    छोटी चोट भी
    बहुत बडी होती है !!

    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
    2020 में एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!

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  8. बहुत सुंदर ...वाह पढ़कर आनंद आ गया...बधाई

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