इस शहर में कोई नहीं अपना नजर आत। ।
कोई परिंदा गीत यहाँ, क्यूँ नही गात।।
बस आसूँओं की बरसात हैं, तन्हाईयां मेरी,
कोई भी शख्स दिल को मेरे, क्यूँ नही भाता।
आया था मैं तेरे लिए, इस शहर में यार,
ढूंढा मैनें बहुत मगर, नजर तू नही आता।
जाऊँ कहाँ बता मैं, भटक रास्ता गया,
कोई रिश्ता है दिल का, या कोई नही नाता।
बढ़िया है भाई!! रिस्ता=रिश्ता !
ReplyDeleteसमीर जी,सुधार के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति परमजीत जी !
ReplyDeleteकोई तुम्हें हंसायेगा इसका इंतजार कभी मत करना
ReplyDeleteगढ लो बहाने कोई भी, मन करे तो अकेले में हंसना
अपने मन से बाहर निकल कर देखो, वही है साथी एक
उससे बात करो तो, बहेगा खुशी का अनवरत झरना
दीपक भारतदीप
हिंदी दिवस पर मेरी तरफ़ से बधाई
ReplyDeleteदीपक भारतदीप्
बहुत खूब भाई। इस दिल को छू लेने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है।
ReplyDeleteरवीन्द्र प्रभात
Paramjitji,jab bhee apke blog pe aati hun aanand aa jata hai!
ReplyDeleteMeree aurbhee kahaniya mere blogme prakashit kee hain...zaroor padhiyega aur tippaniya deejiyega.
Apne blog ko mai blogvani se jod nahee payee hun!
अच्छी अभिव्यक्ति है, क्रम बनाए रखें.
ReplyDeleteअगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।
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